Saturday, February 17, 2018

मार्क्सवाद 103 (द्वंद्वात्मक यथार्थ)

बढ़िया। असमानता के सारे दार्शनिक भिन्नता को असमानता के रूप में परिभाषित करते हैं और उसी परिभाषा की गोल-मटोल तर्कों असमानता साबित करते हैं। पांचों उंगलियों का उदाहरण सब देते रहते हैं। सब अलग हैं, छोटी बड़ी नहीं। द्रोणाचार्य को एकलव्य की सबसे छोटी उंगली, अंगूठा, ही सबसे खतरनाक लगी? वजन के हिसाब से व्यक्तित्व का माप किया जाय तो दुनिया के 99.9% पुरुष मुझपर भारी पड़ेंगे। अब तो कोई कहता नहीं बल्कि पूछते हैं कि इतनी अच्छी शरीर कैसे मेंटेन किए हो? पहले जब कोई कहता था कि मैं बहुत कमजोर हूं, तो जवाब देता था, 'मॉफ कीजिए मैं कमजोर नहीं पतला हूं, चाहे तो हाथ मिला लो'। यथार्थ खंडित नहीं होता द्वंद्वात्मक युग्म की समग्रता में होता है। यथार्थ एक जैविक (ऑर्गैनिक) संरचना है जिसमें अंश और समग्र एक दूसरे से अभिन्न हैं। शासक वर्ग और उसके पेशेवर बुद्धिजीवी जानबूझकर यथार्थ का खंडित चित्रण करते हैं।

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