जोहरा बेगम के नब्बेवें जन्मदिन पर टीवी पर एक पत्रकार ने पूछा कि उन्हें मौत का डर नहीं लग रहा था उन्होंने उल्टे उससे पूछा, "तुम यकीन से कह सकते हो कि मेरे पहले नहीं मरोगे? जोहरा बेगम तो उसके बाद काफी दिन रहीं, उस पत्रकार का नहीं पता। इस बात की याद इस बात से आई कि कई लोग मेरे बुढ़ापे पर तरस खाकर मेरी मौत की कामना करने लगते हैं। मौत अंतिम सत्य है लेकिन अनिश्चित। जिंदगी निश्चित और ठोस, उसी का आनंद लें। दुर्वाशा का देश है मैं डर जाता हूं क्योंकि मुझे 135 साल जीना है, 72 साल ही अब बचे हैं, किसी के शाप से इससे भी कम हो सकती है। शाप से बचने के लिए उनकी दृष्टि से ओझल हो जाता हूं। 1974-75 में एक बार कटरा पानी की टंकी के पास लल्लू के ठेले पर चाय पीते हुए सब बात-बात में किसी ने कहा वह इतने साल जीना चाहता है, वह इतने, 100 तक कोई पहुंच ही नहीं रहा था। मेरे मुंह से निकला मैं तो 135 साल जिऊंगा (चाहता हूं, नहीं। गणित का विद्यार्थी था, जिसमें कमोबेश कुछ नहीं होता)। तबसे इस संख्या में बदलाव का कोई कारण नहीं मिला। अरो भाई जो अपुने हाथ में नहीं उसकी चिंता क्यों? जो हाथ में है, जो जीवन है, जो अनिश्चित नहीं निश्चित है, उसे सुंदरतम बनाएं, वह विचारों के विकास-विस्तार और उन्हे व्यवहार में अमल करते हुए जीने से संभव है। मुझे वैसे इन बातों का बुरा मानने से ऊपर उठ जाना चाहिए। लेकिन ऋषि-मुनि तो हूं नहीं एक आवारा 'वामी' हूं, कभी-कभी नही उठ पाता ऊपर। भाई मैं 1955 में बिना अपनी मर्जी के पैदा हो गया और बिना अपने प्रयास के उम्र साल-दर-साल बढ़ती ही जाएगी। प्रोफाइल में भी सफेद दाढ़ी की ही तस्वीर शफल करता रहता हूं, कभी कभी नस्टेल्जिया के कोई सिर पर बाल वाली तस्वीर लगा देता हूं, आश्वस्त होने के लिए कि दाढ़ी कभी काली भी थी और सिर पर बाल भी थे। हा हा ।
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