Monday, February 26, 2018

बगावत की पाठशाला 1 (मार्क्सवाद क्या है 1)

मैं इस मंच पर एक पाठशाला खोल रहा हूं, सरल शब्दों में जब मौका मिला एक छोटा (लगभग 500 शब्द) क्लास लूंगा। क्लास में कही गयी या उससे जुड़े सवालों का जवाब दिया जाएगा। असंबद्ध सवालों या निजी आक्षेपों को डिलीट कर दिया जाएगा। हाजिरी स्वैच्छिक है, पहला पाठ है मार्क्सवाद क्या है? इसे 5-6 क्लासों में पूरा किया जाएगा।

मार्क्सवाद क्या है?
पाठ 1
(द्वंद्वाद्मक भौतिकवाद-1)
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को मार्क्सवाद का दर्शन कहा जाता है जिसका मार्क्सवाद के विज्ञान, ऐतिहासिक भौतिकवाद के साथ पारस्परिक पूरकता और पुष्टि के संबंध है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का एक नियम है कि प्रकृति की संरचना द्वंद्वात्मक है तथा उसकी गति वस्तु तथा विचार की द्वंद्वात्मक एकता से संचालित होती है। इस द्वंद्वात्मक युग्म में प्राथमिकता वस्तु की होती है। वस्तु से विचार पैदा होता है, विचार से वस्तु नहीं। वस्तु विचार के बिना रह सकती है तथा ऐतिहासिक रूप से विचार की उत्पत्ति वस्तु से होती है। इब्ने इंशा ने ‘उर्दू की आखिरी किताब’ में लिखा है कि न्यूटन ने सेब तोड़ने के लिए गुरुत्वाकर्षण नियम का आविष्कार किया। अच्छा, स्वस्थ, व्यंग्य लिखना सबके बस की नहीं है। इब्ने इंशा शायरी भी व्यंग्य में ही करते हैं, “हक अच्छा पर हक के लिए कोई और लड़े तो और अच्छा” पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह, जियाउल को जनता को उनका यह नेक संदेश खतरनाक लगा। हर फासीवादी या तानाशाह विचारों से डरता है, खासकर उनकी व्यंग्य या कार्टून में अभिव्यक्ति से। वह नरपिशाच इतना घबरा गया कि इब्ने इंशा में जेल में ठूंस दिया, करो अब शायरी। शायरी तो वे तब भी करते रहे, लेकिन जेल की तकलीफों ने ज़िंदगी कम कर दी। ‘राष्ट्रवाद’ के रहस्य उजागर करने के राष्ट्र-द्रोह में हबीब जालिब का भी वही हश्र हुआ। वे लोगों से कह रहे थे, “हिंदुस्तान भी मेरा है, पाकिस्तान भी मेरा है/दोनों ही देशों में लेकिन अमरीका का डेरा है” ; “न मेरा घर है खतरे में न तेरा घर है खतरे में/ वतन को कुछ नहीं खतरा, निजाम-ए-जर है खतरे में”; और तो और, “गर फिरंगी का दरवान होता..................... वल्लाह, सदर-ए-पाकिस्तान होता”। टेक्स्ट के बीच में लंबे फुट के लिए मॉफी।

न्यूटन के नाम पर इब्ने इंशा याद आ गए, जिया का डर बेबुनियाद नहीं था। अरे भाई सेब तो अनादि काल से गिरते रहे हैं। सेब के गिरने की भौतिक घटना (वस्तु) को गिरते देख न्यूटन के दिमाग में सवाल आया क्यों? और वे वस्तुओं के ऊर्ध्वाधर पतन के कारणों की खोज में लग गए। तमाम प्रयोगों के जरिए उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के नियमों का आविष्कार किया, जिससे हम किसी भी निश्चित मात्रा की किसी ऊंचाई से गिरने के किसी भी विंदु उसके वेग, त्वरण, गतिज ऊर्जा तथा तद्जनित बल की बिल्कुल सही सही गणना कर सकते हैं। न्यूटन के नियमों के पहले सेब गिरने की भौतिक घटना (वस्तु) की व्याख्या में महज क्या? सवाल का जवाब दे सकते थे, क्यों?; कैसे?; और कितना? का नहीं। यह अपूर्ण यथार्थ था, न्यूटन के नियमों ने उसे संपूर्णता प्रदान की। दूसरे शब्दों में कहें तो यथार्थ वस्तु और विचार का मिलन है, जिसे मार्क्सवादी शब्दावली में, द्व्वंद्वात्मक एकता कहते हैं। विचार और वस्तु एक दूसरे के पूरक हैं।

थेसेस ऑन फॉयरबाक में मार्क्स लिखते हैं, चेतना भौतिक परिस्थितियों का परिणाम है और बदली हुई चेतना बदली हुई परिस्थितियों की। लेकिन न्यूटन के गति के नियम के अनुसार बिना वाह्य बल के कोई वस्तु हिलती भी नहीं। भौतिक परिस्थितियां आपने आप नहीं बल्कि मनुष्य के चैतन्य प्रयास से। अतः इतिहास की गति का निर्धारण भौतिक परिस्थितियों और सामाजिक चेतना की द्वंद्वात्मक एकता से होता है, किसी ईश्वर, पैगंबर, अवतार की इच्छा या कृपा-दुष्कृपा से नहीं।

मनुष्य ईश्वर की रचना नहीं है, ईश्वर मनुष्य की रचना है। विकास के हर चरण में मनुष्य अपनी खास ऐतिहासिक परिस्थितियों, खास ऐतिहासिक जरूरतों के हिसाब से अपने शब्द; मुहावरे; कहावतें; किंवदंदियां; उपमा-अलंकार; अतिशयोक्तियां अफवाहें; धर्म और ईश्वर की अवधारणाओं की रचना करता है। चूंकि ईश्वर की अवधारणा मनुष्य-निर्मित, ऐतिहासिक अवधारणा है, इसीलिए देश-काल के परिवर्न के साथ इसका स्वरूप बदल जाता है। पहले ईश्वर गरीब और असहाय की मदद करता था अब उसकी करता है जो खुद अपनी मदद कर सके। (सामाजिक डार्विनवाद)।
....... जारी
26.02.2017




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