Ramkishore Shastri जी अपने सहकर्मी धर्म का पालन कर रहे हैं, इस शह के मुशाहिद वीसी के पक्ष में खड़े होकर। हॉस्टल में घुस कर छात्रों की पिटाई करवाने वाला, खासकर लड़कियों के हॉस्टल में पुरुष पुलिसकर्मियों को भेजकर तांडव मचवाने वाला नराधम शिक्षक नहीं, एक मर्दवादी गुंडा है, जो अपने पट्टाधारी शिक्षकों को लड़कियों के आंदोलन के विरुद्ध 'शांति" मार्च पुलिस सुरक्षा में निकलवाता है लेकिन छात्रों का जुलूस नहीं निकलने देता वह शिक्षक नहीं हो सकता, नेटवर्किंग से नौकरी लेता है। वे शिक्षक जो छेड़खानी के समर्थन में वीसी की वफादारी करते हैं वे शिक्षक होने के अपात्र हैं। हमारे बच्चे अपराधी नहीं हैं, अगर हों तो हमें सोचना चाहिए कि हम कैसे शिक्षक हैं? जो भी इस नराधम का समर्थन करता है, वह शिक्षक की नौकरी करता है, शिक्षक नहीं है।
1. समस्याएं राजनैतिक हैं, इसलिए धरना प्रदर्शन राजनैतिक ही होगा। जो वीसी कहता हो लड़के हैं, करेंगे ही, लड़कियां निकलती क्यों हैं, 6 बजे का बाद? वह एक मर्दवादी .... है।
लड़कियां पहले वीसी कार्यालय ही गयी थीं जहां उन्हें ही दोष दिया गया।
2. लड़कियों के शांतिपूर्ण सम्मान के आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस क्यों बुलाया? कैंपस में पुलिस बुलाने वाला वीसी शिक्षक नहीं हो सकता।
3. मैं नहीं जानता कि इस कुलपति ने शिक्षक-छात्रों के लिए अपने कार्यालय का दरवाजा खोल दिया, लेकिन लड़कियों की मांगे सरल थी, कैंपस में प्रकाश और सीसीटीवी व्यवस्था की, उन्हें अपने आका के सुर में सुर मिलाते हुए नक्सली बता दिया और 1200 लड़कियों पर मुकदमा कर किया यह सरकारी हथियारों से छात्रों का मनोबल तोड़ने का आपराधिक तरीका है, शिक्षक का काम निर्भीक नागरिक तैयार करना है, लेकिन वह खुद डरा-मरा है और अपने जैसा रीढ़विहीन नागरिक ही बनाएगा। लड़कियां संवाद ही तो चाह रही थीं, संवाद करना चाहता तो बच्चों के पास खुद जाता न कि पुलिस भेजता।
4. जहां तक शास्त्री जी की आखिरी बात, 'जो व्यक्ति अध्यापक संघ का अध्यक्ष रह चुका हो....... उस पर संवादहीनता का आरोप सूर्य पर थूकने जैसा है'। ऐसे ही मर्दवादी, फिरकापरस्त अगर शास्त्रीजी के लिए सूर्य हैं तो शिक्षा जगत में घनघोर अंधेरा अवश्यंभावी है। लेकिन ये उगते हुए सूरज, जगे-जमीर की युवा उमंगें उस अंधेरे को चीर कर नया उजाला लाएंगी। अध्यापक संघ का चुनाव जीतने की बात है तो उसके लिए जोड़-तोड़ आधार होता है, शिक्षा की प्रतिबद्धता नहीं। अपनी बात खत्म करूंगा अपने इलाहाबाद के अनुभव से, मैं और शास्त्री जी विद्यार्थी परिषद में थे, मुझ पर मार्क्स के शब्दों का प्रभाव पड़ गया और शास्त्री जी भी सांप्रदायिकता की राजनीति के देश पर प्रतिकूल प्रभाव का आभास या जिन भी कारणों से अलग हो गए। शिक्षा जगत में मुझे पहला कल्चरल शॉक लगा 1972 में जब इवि में दाखिला लिया। शिक्षकों की लामबंदी कायस्थ और ब्राह्मण लॉबियों में थी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा कि पीयचडी करके भी लोग ब्रह्मण/कायस्थ से इंसान नहीं बन पाते!
मित्र प्राो.राम किशोर शास्त्री से माफी के साथ।
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