देश को गिरवी रखकर नहीं, रॉकेट का विकास किसी देश में नहीं होना चाहिए। नेहरू के शासन काल में भारत का औद्योगिक विकास सोवियत संघ की सहायता से हुआ, आर्थिक तबाही की शर्त पर कर्ज पर नहीं। 1930 का पूंजी का संकट क्रयशक्तिविहीन समाज में अतिरिक्त उत्पादन का था आज भूमंडलीय पूंजी का संकट अतिरिक्त पूंजी का है जो फायदेमंद निवेश की नीड़ की तलाश में भटक रही है। जापान 2005 से ही यह कर्ज और तकनीक थोपने के चक्कर में है। कुछ रेल अधिकारी इसके समर्थन में पीयमो में लॉबिंग की लेकिन तत्कालीन पीयमो के कुछ समझदार अधिकारियों की सूझ-बूझ से इसे हरी झंडी नहीं मिली, लेकिन मोदी को बुलेट ही चाहिए।
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