Thursday, September 14, 2017

मार्क्सवाद 80 (बुलेट ट्रेन)

मैं इसका पुरजोर विरोध करता हूं। इससे भारत इंडोनेशिया से भी बड़ा कर्जदार हो जाएगा और कर्जदार मुल्क को गुलाम बनाना ज्यादा आसान होगा। मजदूरों का खून चूसकर इकट्ठा राजस्व उन ऐयाशों की शौक के मनोरंजन का कर्ज उतारने में बर्बाद होगा जो जहाज से ज्यादा समय में जहाज से ज्यादा किराया देकर अहमदाबाद से मुंबई जाने की शैक पूरा करेंगे। समाज की प्राथमिकताएं क्या हैं?, मार्क्स ने बार बार कहा है कि समय-काल की ठोस जरूरतों और परिस्थितियों के अनुसार तय होनी चाहिए। समाज की जरूरत बुलेट ट्रेन नहीं है, शिक्षा है, बुलेट ट्रेन की लागत कई सालों की शिक्षा बजट का कई गुना है।

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