ईशनिंदा
ईश मिश्र
मित्र महेंद्र यादव कितनी चतुराई से आपने कृष्ण-सुदामा की नकली कहानी सुनाकर एक भोले-भाले ब्राह्मण को झासे में फंसाकर उस वाले ईश के बारे में अशोभनीय बातें अनजाने में कहवा लिया, अब धमकी भी दे रहे हैं कि ईशनिंदा में ईश मिश्र ही फंसेंगे। मैं तो भावनाओं में बहकर कुछ ज्यादा ही उद्वेग में हां में हां मिला दिया। ब्राह्मण बेचारे की ‘जय हो जजमान’ कहने की आदत जो होती है। दक्षिणा दिया नहीं और कोट-कचहरी का डर दिखाने लगे। कितनी अकल लगाया और हमारे बचपन में मूर्ख सवर्ण अहिरों की अकल को लेकर चुटकुले सुनाते थे, अपनी छिपी प्रतिभा से अनभिज्ञ यादव जी भी अपने मजाक की हंसी में शामिल हो जाते थे। जमींदार उन्हीं की लाठी के बल पर बकैती करते थे और उन्ही का मजाक उड़ाते थे। वे इतने बेअक्ल थे कि समझ नहीं सकते थे मामला अक्ल की कमी का नहीं, जमीन और शिक्षा की कमी का था। इन्हें सुपर-बेस स्ट्रक्चरों के रिश्ते का भान नहीं था। मैं कहां ईशनिंदा के चक्कर से निकल कर बचपन के चक्कर में फंस गया। सुना है ईश निंदा के मामले में जमानत भी नहीं होती। लेकिन अब तो कोह दिया। तोड़कर दुनिया की दीवार, साजना कर लो मुझसे प्यार जो होगा देखा जाएगा। वैसे तो दो ईशों के मामले में कोट-कचहरी का क्या काम? लेकिन धरती पर उसके आदमियों को यह नहीं मालुम कि दो बड़ों की बात में छोटों को नहीं बोलना चाहिए और बैकुंठ में मेरे कोई आदमी (देवता) हैं, नहीं। वह हमेशा ही गैरबराबरी की लड़ाई लड़ता है। उसके अंदर इतना बड़प्पन नहीं है कि एक अदना से इंसान के मुंह से उसके बारे में कुछ निकल ही गया तो माफ कर दे या नजर-अंदाज कर दे, न कि धरती के अपने बंदों से कोट-कचहरी करवाए या गोली मरवा दे! मैं ते इंसान हूं और सारे गाली-गलौच वालों को माफ कर देता हूं, फेसबुक पर गाली ज्यादा वैदिक (वैदिक हिंसा हिसा न भवति) हो जाती है तो इसके रचइता को ब्लॉक कर देता हूं। अगर वाकई किसी बैकुंठ में वाकई कोई और ईश है तो उसे अपने धरती के इक्जीक्यटिव ऑफिसर्स को समझाना चाहिए। और नहीं है तो कोट कचहरी क्यों? खैर तुलसी बाबा कह ही गए हैं समरथ को नहिं दोष गोसांई।
अगर मामला कोट कचहरी तक पहुंचा पहले तो आत्म-निंदा की गोली दूंगा। मैं हाड़-मांस का वास्तविक ईश हूं। फर्क बस इतना है कि वह भगवान है और मैं इंसान। इंसानों से गलतीयां होती रहती हैं और अगर कोई गलती निंदनीय लगे तो मान लेना चाहिए। भगवानों का पता नहीं। वैसे भी भगवानों में आत्मालोचना का प्रचलन कभी नहीं रहा। ईशनंदा मैं आत्मालोचना के रूप में करता हूं, हो सकता है कभी मुंह से ईश का कोई पर्याय भी मुंह से निकल गया हो। मेरे लिए ईश-निंदा का मतलब आत्म-निंदा है।
अगर अगर यह गोली काम न कर पाई तो अध्यात्म के प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग करूंगा, एक पहुंचे हुए अघोड़ी के रूप में ईश्वर से सीधे संवाद की नौटंकी। धरती और बैकुंठ के ईशों में समागम कोई नई बात तो है नहीं। इतिहास तमाम जाने-माने बाबाओं के पूजनीय पाखंडों से भरा पड़ा है। एक देवरहा बाबा था वह जमीन पर पैर नहीं रखता था, वाहन से सीधे मचान पर। सिर पर हाथ नहीं पैर रखकर आशिर्वाद देता था। इंदिरा गांधी की आशिर्वाद लेती तश्वीर काफी चर्चित हुई थी। उनकी उम्र 500 साल से ज्यादा बताई जाती थी। एक बार उनके एक भक्त ने कहा कि उन्हें भीष्म पितामह की तरह इच्छा-मृत्यु का वरदान है, उनके चेलों का कहना था कि बाबा का ईश से नियमित संवाद होता रहता था। किसी की मुलाकात उनके खास चेले से हुई जिसने बताया कि बाबा की सही उम्र तो पता नहीं, वह उनके साथ 200 साल से ही था। यह सब इसलिए कह रहा हूं कि थोड़ा अभिनय ठीक हो और आप जैसे 10-20 पढ़े-लिखे, प्रखरबुद्धि, तर्कशील नास्तिक चेले-चेलियों की अभिनय के लिए राजी हो जाएं जो चतुराई से मेरी उस ईश से समागम और संवाद की कहानियां गढ़-गढ़ इतने प्रामाणिक ढंग से प्रचारित करें कि गोएबेल्सवा भी फेल हो जाए। इसमें वे रजत शर्मा के चमत्कारी चैनल की मदद ले सकते हैं। अरे जब खुद को घोषित करने से कृष्ण की छोड़ो, रजनीश, साईबाबा, हरमीत सिंह जैसे चीकट भी भगवान मान लिए जाते हैं तो ईश और ईश के समागम और संवाद की कहानी ढंग से गढ़ने पर मान ही ली जाएगी। आप जानते हैं कि भारत भक्तिभाव प्रधान देश है, जहां प्रभु अवतार भी लेता है, चमत्कार भी करता है। अदृश्य रहकर अतिप्रिय भक्तों से संवाद भी करता है तथा वरदान तो देता ही है, बस ज्ञान नहीं देता।
हां आप लोग यानि ‘परमपूज्य संत शिरोमणि ईश बाबा’ के ‘निष्ठावान’ चेलों को एक प्रामाणिक नास्तिक के संतगीरी में संक्रमण की प्रामाणिक कहानियां गढ़नी-फैलानी पड़ेंगी। गढ़ने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा क्योंकि भारत एक अफवाह2 | Pageपसंद करिश्मों की प्रतीक्षा में रहने वाला देश है। करिश्माई और सनसनीखेज कहानी तेजी से फैलती हैं। सोसल मीडिया जिंदाबाद। एक एपीसोड की पटकथा की कहानी मैं अभी बता देता हूं आप लोग इसमें मनमाफिक, परिस्थिति अनुसार सुधार कर सते हैं।
“संतसिरोमणि ईशबाबा की महिमा अपरंपार, दया, करुणा और समानुभाव के अलावा समदर्शी भी हैं। (पीछे से नारा परमपूज्य संतशिरोमणि ईश बाबा की जय।) धन्य हैं प्रभु, भक्तों पर ही नहीं, भक्तिभाव की संभावना वाले ईश मिश्र जैसे जघन्य, दुष्ट नास्तिकों के साथ भी समागम और संवाद की कृपा करते हैं जो मार्क्स नामक एक दुष्ट प्रेतात्मा की चपेट में आकर, पूर्वजों की पुनीत परंपराओं और अपनी जड़ों से कटकर नास्तिक और वामी-कौमी हो गया था। सौभाग्य ईश नाम के बावजूद, अदकचरे ज्ञान के अहंकार में परमपिता और उनके अवतारों के बारे में अनाप-सनाप बकता रहता था। (परमपूज्य, संत शिरोमणि ईश बाबा की जय।) धरती के भक्त नास्तिकों को वामी-कौमी कह कर लट्ठ लेकर पीछे पड़ जाते हैं वे फर्जी हैं, वे उस ईश के भक्त हो ही नहीं सकते जो बात-बात पर विश्वविधाता के लिए ऊलजलूल बोलने वाले जघन्य, घनघोर नास्तिक ईश से समागम और संवाद कर हृदय परिवर्तन कर एक दुष्ट भौतिकवादी को एक पहुंचा हुआ आध्यात्मिक गुरू बना दिया। (परमपूज्य ......... )”।
भक्तों की भीड़ और प्रवचन के प्रपंच और शब्दाडंबर से एक नास्तिक जल्दी ही जनमन में एक पहुंचा हुआ संत बन जाएगा। चिंता मत करिए एक बार मामला खत्म हुआ फिर नौटंकी बंद कर जमात-ए-नास्तिक में हम सब दुबारा सक्रिय हो जाएंगे और और अनुभवजन्य प्रामाणिकता से सबको बताएंगे किस तरह लोग बाबा-माइयों के फरेब में फंसते हैं।
अगर कोट-कचहरी की नौबत आई तो एक पहुंचे हुए औघड़ संत के रूप में पूरी तैयारी के साथ जाऊंगा, खोपड़ी, माथा, गर्दन सब जगह भभूत लपेट कर, मुरली मनोहर जोशी की तरह गले में 3-4 रुद्राक्ष की मालाएं, हाथ में जपने वाली माला। अभिनय में निपुण 12-14 नकली भक्तों के साथ नकली संत बन जोर-जोर से एकालाप करते अदालत में पहुंचूंगा, "कितने निर्दयी हो ऊपर वाले ईश भाई, हमनामी का भी ख्याल नहीं रखा औरे अपने इन फर्जी भक्तों से मेरे नाम अपनी निंदा का गैरजमानती वारंट निकलवा दिया?.............”। चेलों के अलावा और भी लोग रास्ते में साथ हो लेंगे कुछ के लगेगा कि वाकई भगवान से संवाद कर रहा हूं, कुछ अपने आप बड़बड़ाने वाला पागल समझ साथ हो लेंगे। उस ईश कि बात तो सिर्फ यही ईश सुनेगा इसकी सब। लेकिन उससे अपनी नजदीकी दिखाने के लिए बाकी भी लगने से परे उसे मेरी ही तरह उस ईस की अनकही बातें भक्तिभाव से सुनेंगे। नाम पुकारते ही चेलों की जयकार के बीच अदालत में घुसते ही, बैकुंठ वाले कल्पित ईश से काल्पनिक संवाद शुरू कर दूंगा, ' देखो भई ऊपर वाले ईश! तुम्हीं ने तुसली बाबा से लिखवाया है कि ई कलियुग है और कलियुग में सब उल्टा होगा”. तभी सरकारी वकील कुछ सवाल के लिए टोंकेगा तो आप जैसा कोई चेला उसे डांट देगा कि संत शिरोमणि अभी बैकुंठ में हॉट लाइन पर बात कर रहे हैं, मुस्किल से मिलपाती है लाइन, नेटवर्क भी बहुत बिजी रहता है। मैं देवताओं की स्टाइल में हाथ उठाकर चेले को शांत रहने का इशारा कर पर काल्पनिक संवाद जारी रखते हुए, “तुम तो भाग्यविधाता हो, हम का जानते थे कि अहिरों को आप इतनी अकल दे देंगे कि एक भोले-भाले बाभन को फंसाकर आपके खिलाफ भड़का देंगे?' पॉज .. 'अरे ई का कह रहे हैं, बैकुंठ में कहां से असुर पहुंचकर तोड़-फोड़ कर रहे हैं? लेकिन उहां तो सुना है कि सब देवता ही .......... क्या ब्रह्माजी से सवाल-जवाब कर रहे हैं? ..... बाप रे लमछर-लमझर लाठी लेके! इंद्र महराज का दधीध की हड्डियों का बज्रास्त्र क्या हुआ? ..... क्या?? महर्षि दधीच की आत्मा बुड्ढी हो गयी और बज्रास्त्र में वह मारक शक्ति नहीं जिससे असुर संहार करते थे? हमने तो सुना था आत्माएं अजर अमर तथा सदाबहार रहती हैं? ... .. का? कलियुग में आत्माओं का भी करेक्टर बदल गया है, कई करेक्टरलेस हो गयी हैं।............ क्या? क्या?......... वह महिषासुर वाला पर्चा तो समृति इरानी जी ने माफी मांगकर प्रायश्चित के साथ संसद के पटल पर रखने का पाप किया था? .... . लेकिन जेयनयू में महिषासुर दिवस वाली बात बैकुंठ तक पहुंची कैसे? और इतनी बात से देवता परेशान हैं?........... दुर्गाजी सबेटिकल पर गयी हैं? लेकिन बतिया पहुंची कैसे? हमने तो सुना था कि धरती तथा बैकुंठ के बीच नारद कम्युनिकेसन सेवा डिफंक्ट हो गयी है? ......... ई फाइव जी क्या है? ...... अच्छा देवता लोग भी जुगाड़ में माहिर हैं। इंसानों से 1-जी.. 4-जी बनवाया और 1-4 को जोड़कर 5 कर लिया।..... का? ब्रह्मा जी से धरती की असमानता का हिसाब मांग रहा है?............ नहीं चिंता न करो ब्रह्माजी ब्रह्मज्ञान से कोई तरीका निकाल लेंगे।............. ई लो, हम तो अपना रोना सुनाने के लिए मुश्किल से नेटवर्क कनेक्ट किया कि यहां तुम्हारे प्रतिनिधि बनकर कुछ लोग जीना हराम किए हैं और तुम बैकुंठ की विपदा सुनाने लगे। हमने तो सोचा था बैकुंठ में सुख शांति होगी।............ कोई बात नहीं मेरी चिंता मत करिए। तुम्हारी प्राथमिकता बैकुंठ की सुरक्षा होनी चाहिए, मैं अपना कुछ जुगाड़ कर लूंगा। लेकिन इंद्रजी ने तो सारे असुरों का बध कर दिया था, फिर कहां से बैकुंठ में आ टपके? ....................... ई साइबर यान? यातायात तकनीक??? यहां तो साइबर यान पर आवाज ही यात्रा करती है, ऊ सब सशरीर बैकुंठ पहुंच गए! असुरवे इतने तेज कैसे हो गए? ................ अब संकट में हमनाम की मदद सानी फर्ज है, वह हमनाम भगवान ही क्यों न हो? .............. चिंता न करो कुछ जुगाड़ कर धरती पर आ जाना, पहले भी तो ऐसे ही आते रहे हो। कोई बात नहीं.......... रहने-खाने तथा अस्तित्व की गोपनीयता का इंतजाम हम पर छोड़ दो। पहले जब-जब आए तो पता चल गया, द्वापर में तो तुम्ही ने अपने ईश होने की घोषणा की थी तथा चक्र-सुदर्शन के भय से सब ने मान भी लिया था।............ यहां कुछ न कुछ अंडरग्राउंड रहने की जुगाड़ हो जाएगी। ........ उसकी चिंता मत करो, मैं भी तो आपातकाल में इलाहाबाद से जेयनयू आकर खुलेआम अंडरग्राउंड रहता था। ......” ओह! ई बैकुंठ के कम्युनिकेसन सर्विस प्रोवाइडर्स भी बेईमानी करते हैं साल्ले, धरती वालों की ही तरह नेटवर्क गायब कर दिया, अब उस वाले ईश को दोबारा टेलीपैथिक कॉल करना पड़ेगा...?’
और, कचहरी में किसी रामदेमदेवी आसन में बैठ कर आंख बंद ध्यान में खो जाऊंगा. कनखियों से देखता रहूंगा कि जज के अलावा कितने वकील और कचहरी में मौजूद कितने लोग श्रद्धा से ओत-प्रोत, भक्ति भाव से मेरी बकवास सुन रहे हैं। भक्त तो भक्ति में रम जाएंगे लेकिन कहां कुछ नास्तिक न हों, बहुत से तो वर्ग की एकजुटता के लिए मेरे पाखंड को सच दिखाने की कोशिस करेंगे। लेकिन नास्तिकों में गद्दार हो सकते हैं। पोल खुल ही गया तो जो होगा देखा जाएगा।
वैसे तो इस कमेंट पर भी समाज की समरसता तोड़ने का आरोप लग सकता है। 25-26 साल पहले फ्रीसांसिंग (बेरोजगारी) के दिनों की बात है। किसी बात पर मेरी पत्नी ने कहा कि भगवान के बारे में उल्टा-सीधा बोलते हो तभी तुम्हारे साथ गड़बड़ होता है। मैंने कहा कि अगर वह इतना गिर सकता है कि मेरे जैसे अदना से आदमी से बदला लेने आ सकता है तो उसकी ऐसी-तैसी जो करना हो कर ले। वह तो नहीं लेकिन उसके नाम पर उसके भक्त कुछ-कुछ पंगे लेते रहते हैं। लेकिन जब खुदाओं का ख़ौफ खत्म हो जाए तो उससे उसके नाखुदा खुद डरने लगेंगे, डरकर हत्या भी कर सकते हैं। लेकिन जब खुदा का खौफ नहीं तो मौत का खौफ क्या?
इसे कहते हैं ऐब्सर्ड नाटक। न कोई ईश निंदा का केस न बाबागीरी की औकात। फालतू में 2000 शब्द बर्बाद कर दिया। महेंद्र यादव ने मजाक में कहा ईश निंदा में ईश मिश्र फंसेंगे, ईशनिंदा में तो नहीं फंसा, ऐब्सर्ड लेखन में फंस गया, जबकि और काम करने थे जरूरी-जरूरी। काश मैं नास्तिक न होता और शाप देने की ब्राह्मणों की शक्ति का क्षय न हुआ होता तो मैं इन्हें शाप देने की सोचता, लेकिन अब यह सोचने का क्या फायदा?
10.09.2017
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