अंधेर नगरी में होता है चौपट राजा
बजता ही रहता है जनता का बाजा
भक्तिभाव प्रधान होगा जो भी समाज
कराता नहीं दिमागी अंधेपन का इलाज
अभिशप्त है झेलने को लुटेरों का राज
नहीं है यह कोई आज-कल की बात
लुटेरों के राज का है लंबा इतिहास
कम गौरवशाली नहीं है भक्त-समाज
दृष्टव्य से साफ साफ चुराता है आंख
करता है विधर्मियों से बेबात रार
लुटता रहता है बार बार लगातार
लूट को समझता है पभु की परीक्षा का उपहार
नारद की कहानियों को महान पूर्वजों की पुकार
गाता रहता है दिन-रात हरेकृष्णा-हरेरामा का भजन
मिलती नहीं फुर्सत दिमाग को देख सके असली गगन
रहेगा जब तक अंधेर नगरी कोई भी समाज
होगा ही उस पर किसी चौपट राजा का राज
(यूं ही, जरूरी काम छोड़कर अनुशासनहीन कलम आवरगी पर उतर आय़ा)
[ईमि: 20.09.2017]
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