Thursday, September 14, 2017

मार्क्सवाद 82 (बुलेट ट्रेन)

यह तकनीक का आविष्कार नहीं उधारी है। आप गलत रूपक इस्तेमाल कर रही हैं। बुलेट ट्रेन की योजना मोदी का चुनावी शगूफा है 2022 का। रुपए के अवमूल्यन को देखते हुए, घाटे की परियोजना के कर्ज से देश की अर्थव्यवस्था तबाह होगी, अर्थतंत्र की तबाही का सबसे बुरा असर मजदूरों पर पड़ता है और उसकी लड़ने की क्षमता पर पड़ता है। रिजर्व आर्मी ऑफ वर्क फोर्स यानि बेरोजगारों की बढ़ती फौज और ठेकेदारी के 12 घंटे पसीने के बदले किसी तरह पेट भरने वाले दिहाड़ी मजदूर लंपट सर्वहारा ज्यादा बनते है, हिरावल दस्ते के सिपहसालार कम। पूंजीवाद के संकट का तकनीकी विकास से कुछ लाना-देना नहीं है, संचय बढ़ने के लिए तकनीकी विकास और मजदूरों की छटनी उसकी मजबूरी और अंतर्निहित प्रवृत्ति है। मार्क्सवाद ज्योतिषशास्त्र नहीं, गतिमान विज्ञान है, नहीं तो पहली मार्क्सवादी क्रांति इंग्लैंड या अमेरिका में होनी चाहिए थी, रूस-चीन में नहीं, लेकिन इन देशों में दूर दूर तक कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहा है, वामपंथियों, खासकर कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थिति और वर्गचेतना का आलम भारत से भी दयनीय है।

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