Wednesday, September 13, 2017

फुटनोट 125 (संघी-मुसंघी)

Junaid Rauf यदि आपने उस लड़की का भाषण सुना होता तो ऐसे जहालत के सवाल न करते, वह लड़की मुस्लिम लड़कियों की नहीं सारी लड़कियों की आजादी और बराबरी की बात कर रही है, संयोग से उसका नाम ज़ेबा है। औरत विरोधी मजहबी जहालत पर इस्लाम का एकाधिकार नहीं है, सारे मजहब मर्दवादी है। संघी प्रवृत्ति तो आपकी दिख रही है। संघी और मुसंघी दोनों ही मजहबी जहालत की जुड़वा संतानें हैं, एक दूसरे के पूरक। दोनों ही साम्राज्यवाद के बांटो-राज करो की नीति के पोषक, दोनों ही औरतों की आजादी और बरारी केेबराबर दुश्मन। दोनों को ही लड़कियों के पहनावे और रातों पर, सड़कों पर अपनी हिस्सेदारी की दावेदारी से दिक्कत है और लक्ष्मण रेखा खींचने लगते हैं। संयोग से एक का नाम गुरू गोल्वल्कर हो जाता है दूसरे का मौलाना मौदूदी। हिंदू से इंसान बनना तो जरूरी है ही मुसलमान से भी इंसान बनना उतना ही जरूरी है। मानवता के लिए संघी और मुसंघी दोनों खतरनाक हैं।

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