वेद पुराण सब ग्रंथ हैं उन्हें समीक्षात्मक दृष्टि से पढ़ा-समझा जाना चाहिए। मैं ऋगवेद 3 बार पढ़ा हूं. पहली बार भक्तिभाव से फिर तर्कभाव से। भारतीय पद्धति और बौद्धिकता यूरोप से पुरानी है। कालांतर में ब्राह्मणों ने सारा भौतिकवादी साहित्य और संस्थान, सारा बौद्ध साहित्य और संसथान नष्टकर समाज को हजार साल की कूपमंडूकता में डाल दिया। कौटिल्य का अर्थशास्त्र अपने समय के लिहाज से अप्रतिम ग्रंथ है और राज्य की उनकी परिभाषा राजनैतिक सिद्धांत के इतिहास में अमूल्य भारतीय योगदान है। जब यूरोप अमानवीय, सामंती अंधे युग से गुजर रहा था तो हमारा समाज अमानवीय, मनुवादी वर्णाश्रमी अंधेयुग से गुजर रहा था। कौटिल्य के बाद किसी राजनैतिक ददार्शनिक का नाम बताइए या कालिदास के बाद किसी बड़े साहित्यकार का?
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