कल दिल के दौरे तथा उसके बाद सेवनिवृत्ति से अस्त-व्यस्त मनोविज्ञान से बहुत अवसाद की मनोस्थिति में था कि कुलदीप और नवीन मिलने आ गए, बहुत राहत मिली। लिखने के 5 साल बाद 'खुद का खास बनेगा अंततः आम आदमी' कविता पाठ अच्छा लगा। सामाजिक-राजनैतिक निराशा की इस घड़ी में, इतिहास की घटनाओं के आधार पर आशा की उम्मीदों पर बातचीत सुखद रही। दोनों को दूर जाना था और देर हो रही थी, 'अभी तो दिल भरा नहीं' की अनुभूति से विदा ली गयी। कुछ ही दिनों में यह झोपड़ी छूट जाएगी, लेकिन यही जीवन है।
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