Thursday, June 6, 2019

आज के वक्त को परिभाषित करती कविता




नाम पूछा और तस्दीक के लिए मांगा पहचानपत्र
जो आपके पास था नहीं
आपकी शकल वैसी ही थी
जैसी शकल वाले को वे खोज रहे थे
पंसारे से तो नाम भी नहीं पूछा था
न ही पूछा था नाम डाभोलकर से
लंकेश और लोया का तो नाम खोजते ही पहुंचे थे
अखलाक़ के नाम की तो तमील की थी मंदिर के बुर्ज से
मार दिया था सबको
याद दिलाते हुए चर्च के आदेश से जिंदा जलाए गए ब्रूनो की
शुक्र मनाइए कि आपको पीट कर छोड़ दिया
अगली बार जेब में रखिए पहचान पत्र
तथा टिफिन में शाकाहारी खाना
वरना वक्त नहीं लगता मटन के बीफ में तब्दील होने में

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