Sunday, June 23, 2019

लल्ला पुराण 225 (साम्यवाद)

Sandeep Pandey मित्र आप कई बातें एक साथ कह गए, कुछ-अंतर्विरोधी भी, जिनका उपरोक्त पोस्ट के विषय से असंबद्ध हैं। उपरोक्त मेरी बात में नास्तिकता की झलक तो मिल सकती है, साम्यवाद प्रक्षेपित ही हो सकता है। आप ने लिखा है, "आपकी बात तो कुछ हद तक ठीक है। लेकिन आपकी विचारधारा साम्यवादी प्रकृति की लग रही है। वैसे भी JNU DU में साम्यवादी लोग ही रहते हैं जो देश के इतिहास को अपने विचाधाराओं में घोल कर बच्चो को समझाते हैं अर्थात वास्तविकता से बिल्कुल अलग।" यह विषय से मटियाने का पुराना तरीका है। कोई बात या तो ठीक है या गलत। 'कुछ हद तक' में बताना चाहिए 'किस हद तक' तथा उस हद के आगे गलतियां क्या हैं? दूसरा "लेकिन आपकी विचारधारा साम्यवादी प्रकृति की लग रही है" जैसे कांप्लीमेंट का शुक्रिया। वैसे बात से तो नहीं लगता। मैं दुनिया की ऐतिहासिक भौतिकवादी व्याख्या का समर्थक हूं और समतामूलक समाज का पैरोकार। इसलिए शब्द की व्यापक परिभाषा में मैं एक मार्क्सवादी हूं। इसलिए आपको मेरे 'विचार साम्यवादी प्रकृति' के लगना गलत नहीं है। रही बात जेयनयू और दिवि की, यहां साम्यवादी लोग ही रहते तो क्या बात होती? डीयू में तो भक्तों की भरमार है। छात्र राजनीति में भी एबीवीपी-य़नयसयूआई, मौसेरे भाइयों का बदल बदल कर वर्चस्व रहता है। इलाहाबाद छूटे 42-43 साल हो गए, जेयनयू छूटे 35-36 साल। हां जेयनयू की एक बात तो है, वामी हो या फ्री-थिंकर, (आइसा हो या एबीवीपी) कोई जेयनयूआइट कभी एक्स नहीं होता।

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