Neeraj Chaturvedi असहमति की बजाय मतभेद कहिए। यदि आपने राष्ट्रवाद पर हिंदी और अंग्रेजी के लेख पढ़ लिए तो 1. हिंदू होने का गर्व मिथ्या चेतना है। किसी विशिष्ट सेक्स; जाति; धर्म; स्थान पर पैदा होने में किसी का कोई हाथ नहीं है बल्कि यह अस्मिता जीववैज्ञानिक दुर्घना या संयोग का परिणाम है। जिस बात में आपका कोई योगदान नहीं है उस पर गर्व या शर्म मिथ्या चेतना का परिणाम है। मैं संयोग से बाभन परिवार में पैदा हो गया 100 मीटर दक्खिन पैदा होता तो अहिर होता 100 मीटर पूरब धुनिया (मुसलमान)। शर्म या गर्व अपने कृत्यों पर होना चाहिए न कि संयोगात मिली अस्मिता पर। 2. राष्ट्रवाद का ऐतिहासिक विकास यूरोप में प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट) क्रांति के दौरान हुआ, राजनीति में धर्म का निषेध जिसका एक एजेंडा था।भारत और उपनिवेशों में में राष्ट्रवाद का ऐतिहासिक विकास उपनिवेशविरोधी विचारधारा के रूपमें हुआ। हिंदू या मुस्लिम राष्ट्रवाद यानि धर्म आधारित राष्ट्रवाद की अवधारणा औपनिवेशिक शासकों की बांटो-राज करो की नीति के अनुसार उनके देशी दलालों ने दिया। धर्म आधारित राष्ट्रवाद एक विकृति है वरना बांगलादेश न बनता। इसलिए हिंदू राष्ट्रवाद या इस्लामी राष्ट्रवाद या ईशाई अथवा सिख राष्ट्रवाद की अवधारणा अपने आप में अंतर्विरोधी है। हिंदू या मस्लिम राष्ट्रवाद नहीं होता। जिसे आप राष्ट्रवाद कह रहे हैं वह नफरतयुक्त विभाजनकारी फिरकापरस्थी है। हिंदू और मुस्लिम फिरकापरस्तियां औपनिवेशिक पूंजीवाद की नाजायज जुड़वा औलादें हैं। दोनों विचारधाराएं सभी सामाजिक-आर्थिक मामलों में समान हैं। नीचेै के कमेंटबॉक्स में 1987 में निव लेफ्ट रिविव में छपा आरयसयस और जमाते-इस्लामी पर एक तुलनात्मक लेख का लिंक दे रहा हूं। गूगल सर्च में भी मिल जाएगा। यह लेख बहुत बाद में काउंटरकरेंट में भी छपा है।
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