मेरे बड़े भाई को मुसलमान शब्द से उतना ही लगाव है जितना इस ग्रुप के कई लोगों का। उनके मुसलमान प्रेम की तुलना के लिए इस ग्रुप में समतुल्य ढूढ़ने में बहुत मुश्किल थी, बहुत प्रतिस्पर्धा है। अंत में कलम सही या गलत राजेश के श्रीवास्तव पर टिक गया। मुसलमानों के कुदरती 'कमीनेपन' की अनगिनत कहानियां हैं। यद्यपि उनके कुछ मुसलमान मित्रों ने बहुत जरूरत पर उनकी मदद की है। किसी पारिवारिक कार्यक्रम में मुलाकात में मैंने पूछा कि भाई साहब हम कितने भाई हैं? उनहोंने बताने के साथ आश्चर्य से पूछा 'क्यों'? मैंने जवाबी सवाल किया कि क्या हम सब एक से हैं? प्रत्यक्षस्य प्रमाणं किम्? मैंने कहा कि 'अग्रज अगर एक ही मां-बाप इतने बेटे एक से नहीं हैं तो आप करोड़ों (लाखों, हजारों या दर्जनों ही सही) लोगों के एकसमरस समूह की बात कैसे कर सकते हैं? सांप्रदायिकता में तर्क नहीं होता इसके सिवा कि ये होते ही ऐसे हैं, ऐसी ही भावना यहां के लोगों में 1984 में सिखों के प्रति। आइए हम समाज को प्यार से जोड़ें, नफरत से तोड़ें नहीं।हम आशिफा के अन्याय के विरुद्ध खड़े थे हम ट्विंकल के अपराध के विरुद्ध खड़े हैं। हम हर तरह की हैवानियत के खिलाफ खड़े हैं। हैवानियत हैवानियत होती है। 'मेरा गुंडा, तेरा गुंडा' सिंड्रोम से बचने की जरूरत है। गुंडा गुंडा होता है।
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