गिरीश
कर्नाड का न रहना
ईश
मिश्र
गिरीश कर्नाड जैसे कालजयी नायक मरते नहीं, देहांत के बाद वे
आने वाली पीढ़ियों के उसी तरह प्रेरणा-श्रोत बने रहते हैं जैसे अपनी समकालीन पीढ़ी
के। उन्होंने नाट्य लेखन की नई परंपरा शुरू किया जो उनके न रहने पर भी जारी रहेगी –
वर्तमान को इतिहास की आंखों से देखने की परंपरा। गिरीश कर्नाड बहुआयामी प्रतिभा के
धनी थे। वे एक प्रतिभाशाली अभिनेता थे; एक महान नाटककार थे जिनके नाटक अंग्रेजी
तथा अन्य भाषाओं में अनूदित हुए। उनके कई नाटकों के मंचन दूसरी भाषाओं में कन्नड़
के पहले हुए। 1964 में लिखित तुगलक का पहला मंचन हिंदुस्तानी में दिल्ली में
पुराने किले के प्रांगण में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के तत्कालीन निदेशक इब्राहिम
अल्काजी के निर्देशन में 1970 में हुआ था। वे सामाजिक राजनैतिक समस्याओं पर सक्रिय
थे तथा असहमति के अधिकार के मुखर समर्थक। उनके सामाजिक-राजनैतिक विचारों को मीडिया
की मुख्यधारा भी गंभीरता से लेती थी। वे
भारत की सामासिक संस्कृति तथा धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार थे तथा सांप्रदायिकता और
कट्टरपंथ के प्रखर आलोचक।
तर्कवादी तथा सांप्रदायिकता
विरोधी लेखकों तथा बुद्धिजीवियों पर हिंदुत्ववादी हमलों के विरुद्ध प्रतिरोध प्रदर्शन
में, धमकियों से बेफिक्र वे दृढ़ता से खड़े रहे। अर्बन नक्सल का हौव्वा खड़ाकर जब
सरकार ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा बुद्धिजीवियों कीनधरपकड़ शुरू की तो गले में
‘मैं भी नक्सल’ की तख्ती लटकाकर प्रदर्शन करने वाले जाने-माने लोगों में कर्नाड का
नाम प्रमुख था। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के अनुसार गौरी लंकेश की हत्या की
जांच करने वाली टीम को एक डायरी मिली है जिसमें बुद्धिजीवियों की हिटलिस्ट में
उनका नाम सबसे ऊपर है। लंकेश का नाम दूसरे नंबर पर।
मैंने 1970 के दशक में उन्हें
दो फिल्मों – निशांत तथा मंथन में देखा तथा दिमाग में उनकी छवि एक
कालजयी अभिनेता की बनी। 170 के दशक के अंतिम सालों में तुगलक नाटक देखने के साथ
उनकी बहुआयामी प्रतिभा का भान हुआ तथा उनकी छवि एक कालजयी नाटककार की बनी।
वे सदा से मानवाधिकार आंदोलनों
में प्रखरता से सक्रिय रहे। डॉ. बिनायक सेन की रिहाई के आंदोलन में उनकी उल्लेखनीय
भूमिका थी। आरके नारायण की कालजयी रचना पर आधारित टीवी धारावाहिक मालगुडी डेज
को उनके अद्भुत अभिनय ने चिरस्मरणीय बना दिया। उनके
नाटक वर्तमान और इतिहास के सम्मिश्रण की सटीक अभिव्यक्ति होने के साथ शास्त्रीय और
लोक विधाओं के भी सम्मिश्रण हैं। उनका अभिनय अतुलनीय है।
अपने राजनैतिक-सामाजिक
प्रतिबद्धताओं के चलते वे कर्नाटक में संघ तथा उसके अनुषांगिक संगठनों की
गतिविधियों के प्रखर, मुखर आलोचक थे। लेकिन प्रधानमंत्री नरंद्र मोदी द्वारा
मरणोपरांत उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा पर आश्चर्य इसलिए नहीं हुआ कि वे तो सार्वजनिक
मंचों से अंबेडकर और गांधी की भी प्रशंसा करते रहते हैं। कन्नड़ हिंदी एवं अन्य
भाषाओं की फिल्मों और नाटकों में उनके अभिनय अविस्मरणीय बने रहेंगे। गिरीश कर्नाड
सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति के विरुद्ध एक प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी थे। भारत की
सामासिक संस्कृति के सशक्त समर्थक के रूप में उन्होंने बाबरी मस्जिद के विध्वंस का
मुखर विरोध किया था। उन्होंने संघ परिवार, मोदी सरकार तथा संघ के विरुद्ध अपने
विचार सदा सार्वजनिक किया। मरणोपरांत मोदी द्वारा अपनी प्रशंसा जीते जी वे कभी न
पचा पाते।
जनपक्षीय बुद्धिजीवी, महान कलाकार तथा मानवाधिकार के इस सजग
योद्धा की समृति में कई गर्थ लिखे जा सकते हैं, लेकिन मैं इन चंद शब्दों में अपने
समय के इस महानायक को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
11.06.2019
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