Wednesday, June 5, 2019

मार्क्सवाद 174 (क्या करना है)

"निश्चित रूप से आज उदार पूंजीवाद की गिरफ्त में है" उदारवादी पूंजीवाद में राज्य की भूमिका अहस्तक्षेपीय रेफरी की थी, आज नव उदारवाद में राज्य 'विकास' में पार्टनर है। टाटा या वेदांता अपने बल पर कलिंगनगर या नियामगिरि के आदिवासियों की जमीन नहीं कब्जा कर सकते उसके लिए उन्हें राज्य की वर्दीधारी ताकत चाहिए जो आंदोलनकारियों को कत्ल कर दहशत फैला सके।

Ravindra Patwal लखनऊ में आज की स्थिति की समीक्षा के बाद यही सवाल पूछा गया। कोई साफ विकल्प मेरे पास नहीं है। सोच रहा हूं। इस पर एक पर्चा कुछ दिनों में लिख पाऊंगा। अभी बौद्ध राजनैतिक सिद्धांत के एक लेख में फंसा हूं। पूंजीवाद और समाजवाद दोनों वैचारिकी के संकट से गुजर रहे हैं, मैंने उस दि स्टडी सर्कलमें भी यही कहा था कि प्राथमिकता नई वैचारिकी पर काम करना है, 'क्या करना है?' उसी से निकलेगा। अभी मैं आपकी पोस्ट पर कुछ प्वाइंट्स लिखना चाह रहा था। फिलहाल छोड़ता हूं। तथा-कथित सामाजिक न्याय (नव ब्राह्मणवाद) हिंदुत्व (ब्रह्मणवाद) दोनों ही सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में बड़े स्पीड ब्रेकर्स हैं। इन पर मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य से स्टैंड क्लीयर करने की जरूरत है।

2. सेकंड इंटरनेसनल में सबसे प्रभावी घटक जर्मन सोसल डेमोक्रेटिक पार्टी थी प्रथम विश्वयुद्ध में सबसे अधिक गद्दारी भी उसी ने की, जो अंततः हिटलर के उदय में सहायक बनी।

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