Avnish Pandey साथी हममें विद्वान कोई नहीं, हम सब साधारण इंसान हैं। मिडिल स्कूल में कहीं से दिमाग में बैठ गया कि हर ज्ञान की कुंजी सवाल है। सवालिया तेवर भगवान तक पहुंच गया। सत्य वही जिसका प्रमाण हो, जिस दिन प्रमाण मिल जाएगा, मान लूंगा। 13-14 की उम्र में भूत का भय खत्म हो गया 18 तक भगवान का। मेरी अंतरात्मा मुझे सत्कर्मों की तरफ प्रेरित करता है, आत्मबल ऊर्जा प्रदान करता है, भगवान अनावश्यक हो जाता है। 'हारे को हरि नाम' का चरण पार कर चुका हूं। अफीम का श्रोत होने के साथ ईश्वर पीड़ित की आह भी है और प्रतिरोध का प्रतीक भी। जिसके साथ कोई नहीं होता उसके साथ भगवान होता है। इसीलिए हम धर्म नहीं समाप्त करना चाहते। धर्म छोड़ने का मतलब उन खुशफहमियों को छोड़ना जो धर्म देता है। मेरी पत्नी हर मुश्किल में अपनी (कड़ा-मानिकपुर) या मेरे कुल की इष्टदेवी (विध्याचल) की मन्नत मान देती हैं। हमारा मकसद है लोगों को सचमुच की खुशी मिलने की स्थिति बनाना। जब सचमुच की खुशी मिलेगी तो खुशफहमी की जरूरत नहीं रहेगी और धर्म अनावश्यक हो जाएगा। इसका टाइमटेबल नहीं बनाया जा सकता।
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