Tuesday, August 22, 2017

बिना लड़े कुछ नहीं मिलता

बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
हक के एक-एक इंच के लिए लड़ना पड़ता है
यह जो कवि आरती है
लड़कर ही यहां तक पहुंची है
किया विद्रोह पहले पढ़ने के लिए
और की पढ़ाई
हक़ की दावेदारी तथा जुल्म से लड़ने के लिए
विद्रोह सर्जन की पूर्व शर्त है

उसकी बेबाकी संस्कारों की नहीं
उन्हें तोड़ने के साहस का नतीजा है
लोग जब इंतजार में थे
पाजेब के घुंगरुओं की टुन-टुन की
बना लिया तोड़कर पाजेब उसने झुनझुना
जब आगोर रहे थे बड़े-बुजुर्ग
घूंघट में मुंह ढककर करेगी चरणस्पर्श
उसने आंचल को फाड़कर बना लिया था परचम
जानती है वह यह ऐतिहासिक सच
हार-जीत है तमाम संयोगों का नजीजा
अहम है लड़ाई की गुणवत्ता
इसीलिए एक हार से वह मायूस नहीं होती
कलम पर चढ़ाकर शान
मुक्ति के अगले मोर्चे के लिए
विचारों के और असलहे जुटाती है
आज़ादी के नए नग़्मे लिखती है
क्योंकि वह जानती है
बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
हक के एक-एक इंच के लिए लड़ना पड़ता है
(ईमि: 23.08.2017)

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