1983 में जेयनयू में एक लंबा आंदोलन हुआ था, पुलिस कार्रवाई हुई सैकड़ों लड़के-लड़कियां महीने के आस-पास तिहाड़ में रहे। विश्वविद्यालय अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया और 1983-84 को जीरो यीयर घोषित कर दिया गया। मैं एक क्आांतिकारी छात्ररसंगठन, डीयसयफ का महा सचिव था। आप किसी से नहीं मिलेंगे जिसने 1983 में जेयनयू में प्रवेश लिया हो। बहुत लोगों को शोकॉज़ नोटिस मिले। मेरा भाई जेयनयू और बहन वनस्थली में पढ़ती थी। दोनों का आर्थिक अभिभावक मैं ही था। मेरी थेसिस पूरी होने में 6-7 महीने की देरी थी। सुझे यूजीसी की सीनियर फेलोशिप मिल रही थी और एक स्कूल में गणित पढ़ाता था। रस्टीकेसन और न रस्टीकेसन में एक 2 लाइन के माफीनामे का फासला था। बहुतों ने फासला तय कर लिया कुछ नहीं कर पाए। मुझे भी समझाया गया कि लोग जिस तरह डीमॉरलाइज्ड हैं, तुम्हारे माफी न मांगने से देश क्या जेयनयू में भी कोई क्रांति नहीं आ जाएगी, मैं भी जानता था। लेकिन माफी का मतलब आंदोलन को खारिज करना थान जिसमें भागीदारी का फक्र है। कुल माफी न मांगने वाले लगभग 20 लोग थे, सब किसी-न-किसी क्रांतिकारी वाम धारा से जुड़े हुए। सभी बड़े संगठन -- यसयफआई-एआईयसयफ फ्रीथिंकर्स -- ने गुपचुप समझौता कर लिया था। 3 लोग 3 साल के लिए बाकी 2 साल के लिए रस्टीकेट कर दिए गए। मैंने अपने जवाब में वीसी को काउंटर शो-कॉज ईसू कर दिया कि इस शिक्षा के दुर्लभ केंद्र को बरबाद करने के लिए जनता उनके खिलाफ क्यों न कार्रवाई करे? जाहिर मैं 3 साला सूची में था। हम रह सकते थे लेकिन सर झुका कर सर उठाकर नहीं। सिर उठा के जीने के दुस्साहस की कोई कीमत कम होती है।
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