कोई नहीं कह रहा है कि सर्वहारा की तानाशाही के संक्रमण काल से होते हुए वर्गविहीन समाज सर्वहारा क्रांति का लक्ष्य नहीं है। यह बात तो लेनिन, स्टालिन से पहले मार्क्स, एंगेल्स ने 1848 में ही लिख दिया था और अपने जीवनकाल की दो क्रांतियों में भागीदारी से उस उद्देश्य की प्रक्रिया में अपने योगदान दिए। राजसत्ता पर स्टालिन के उद्धरण दोहराने से क्रांति नहीं होगी। उद्धरण व्याख्या नहीं होती। अगर लेनिन के इतने 'भक्त' हैं तो कम-से-कम लेनिन की राज्य और क्रांति पढ़ लीजिए कि किस तरह मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य से स्थितियों का मूल्यांकन किया जाय़ और किस तरह संगठन बनाया जाए। बहुत पतली सी किताब है। मार्क्स ने 1851-52 में एटींथ ब्रुमेयर में लिखा है कि मनुष्य अपना इतिहास स्वयं बनाता है लेकिन अपनी चुनी हुई परिस्थियों में नहीं बल्कि मौजूद परिस्थियों में। मैंने आपको मार्क्स के लेखन से 6 पेज (2 पेज का 'थेसेस ऑन वपऑयरबाक़' और 'अ कंट्रीब्युसन टू द क्रिटीक ऑफ पोलिटिकल इक़नॉमी का 4 पेज का प्राक्कथन) पढ़ने का आग्रह किया था, ऐतिहासिक भौतिकवाद की समझ बेहतर करने के लिए। मार्क्स का सारा लेखन नेट पर उपलब्ध है। भगत सिंह से आप जुड़े हैं तो भगत सिंह की पढ़ने पर जोर देने की बात भी मान लीजिए।
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