Saturday, August 5, 2017

मुगलसराय की रेलप्रभु से बिनती

मुगलसराय की रेलप्रभु से बिनती

हे प्रभु सुरेश निक्करधारी
सुन लो एक विनती हमारी
दिलों को जोड़ने का है हमारा इतिहास
मत करो उसका दीनदयालिया सत्यानाश
सराय थी मैं मुगल शासनकाल में
पनाह मुफलिस की सूखा और अकाल में
आते अलग अलग देश के बहुधंधी पथिक
खान-पान; भाषा-भेष का होता था फर्क तनिक
पाकर मेरे आश्रय का सहारा
भेदभाव छूमंतर हो जाता था सारा
आया जब अंग्रजी राज
बदला नहीं मेरा मिजाज
बिछाया जब देश में रेल का जाल
बना मैं विभिन्न दिशाओं को जोड़ने की मिशाल
नहीं बदला मेरा सामासिक नाम अंग्रेजों ने
न ही उनके बाद के देशी शासकों ने
मैं जानता हूं उस दीन दयाल को करीब से
फैलाता था नफरत राष्ट्रवादी तरकीब से
जिल्द पर लिखता था समग्र मानववाद
अंदर मानवता के तोड़-फोड़ की बात
मनुस्मृति को बताता सर्वश्रेष्ठ न्यायग्रंथ
और वर्णाश्रम को सर्वश्रेष्ठ सामाजिक पंथ
हे प्रभु सुरेश निक्करधारी
सुन लो एक विनती हमारी
रहने दो मुझे मुगल सराय
मत बनाओ इसे दमन विहार
और बातें हैं उस दीनदयाल की
फिरकापरस्ती के दिगपाल की
बुद्ध को कहता है मातृधर्म का गद्दार
करता है शंकराचार्य की जयजयकार
लिया जिसने बौद्ध गद्दारों से अच्छा प्रतिकार
और तोड़े अनगिनत बौद्ध विहार
करते थे जो तर्क और विमर्श विचार
हे प्रभु सुरेश निक्करधारी
सुन लो एक विनती हमारी
मैं हूं मगल सराय जिंदा मिशाल तारीख की
मत पोतो मुझपर कालिख दीनदयाली राख की
(ईमि:05.08.2017)
पुनश्च:
तो सुनो नफरत के पुजारी
जो भी नाम है तुम्हारा
भागवत, मोदी या अटलबिहारी
बदल दोगे नाम मेरा
तो क्या मेरा इतिहास बदल दोगे?
फैलाकर भारतीयकरण का दीनदयाली उन्माद
मुगलसराय वालों के भाईचारे के जज्बात बदल दोगे?
एक मनुवादी के नाम पर रखकर मेरा नाम
क्या तुम बनारसी धरती का कबीराना कबीराना अंदाज बदल दोगे?
बदलकर साइनबोर्ड प्लेटफॉर्म का
क्या तुम इस मिट्टी की सामासिक संस्कृति का मिजाज बदल दोगे?
तुम्हारा कुछ भरोसा नहीं
बदलकर सारनाथ का नाम शायद सोमनाथ कर दो
इससे क्या वहां की हवा में घुली बुद्ध की विरासत बदल दोगे?
पापियों के पाप धोती गंगा की क्या धार बदल दोगे?
क्या करोगे मुगल-ए-आजम का
फिल्म का नाम बदल कर क्या भगवान राम कर दोगे?
तो सुनो नफरत के पुजारी
जो भी नाम है तुम्हारा
बदलकर मेरा नाम
तुम क्या अपने कुकृत्यों का अंजाम बदल दोगे?
तो सुनो नफरत के पुजारी
जो भी नाम है तुम्हारा
मेरा नाम है मुगल सराय
मैं एक जगह नहीं एक विचार हूं
तारीखों, तहजीबों, संस्कृतियों के संगम का
बदल कर साइनबोर्ड नहीं मिटा सकते मेरा वजूद
क्योंकि विचार मरते नहीं
इंतजार करते हैं प्रतिकार के वक्त का।
(ईमि: 05.08.2017)

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