Satya Narain Mishra: सोसलिस्ट तानाशाहों पर आप लिखिए। भक्तों की पढ़ने-लिखने की आदत नहीं होती पंजीरी खाकर रटारटाया भजन गाते रहते हैं। पढ़ता लिखता तो थोड़ी-बहुत तथ्यात्मक बात करता लेकिन उसका इतिहासबोध अफवाहों या शाखा की नफरतपूर्म दंतकथाओं पर आधारित होता है और बिना कुछ जाने कम्युनिस्ट कम्युनिस्ट अभुआने लगता है। सर्वहारा की तानीशाह पूंजीवादी जनतंत्र के ढकोसले से अलग वास्तविक जनतंत्र होता है। किस कम्युनिस्ट सोसलिस्ट नेता को जनता ने मुसोलिनी की तरह दौड़ा-दौड़ाकर मार डाला? किस कम्युनिस्ट जनता की डर से हिटलर की तरह आत्महत्या की? किस कम्युनिस्ट के नाम पर लोग हिटलर-मुसोलिनी के नामों की तरह थूकते हैं? दक्षिणपंथी शासकवर्ग के जलाल तो कम्युनिस्ट शब्द से बौखला कर गालू-गलौच करते रहते हैं. न करें तो आश्चर्यजनक हैै। भक्त दिमाग से इतना पैदल होता है कि कभी भी विषय पर कुछ बोल नहीं पाता, मुद्दा कुछ भी हो उसके सिर पर कम्युनिस्ट का भूत सवार हो जाता है और अभुआने लगता है। रूपक की भाषा में कहें तो बाभन से इंसान बनाना मुश्किल होता है, नामुमकिन नहीं।
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