शिक्षा संस्थान ज्ञान देने के लिए नहीं बने हैं, ज्ञान बहुत खतरनाक चीज होता है. ये संस्थान छात्रों को व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए आवश्यक सूचनाओं एवं कारीगरी से लैस करते हैं। निर्भीक, चिंतनशील नागरिक बनाना वगैरह प्रास्पेक्टस की शोभा के लिए हैं। ये संस्थाएं परिवेश प्रदान करती हैं जहां आप स्वतः ज्ञान का अन्वेषण कर सकें। लेकिन शासकों को भी यह बात मालुम हो गयी है और स्वतः ज्ञान अन्वेषण को रोकने के लिए सरकार सारे इंतजाम कर रही है। कोर्स बनाने में पूरा ध्यान दिया जा रहा है कि कहीं ऐसा कुछ न पढ़ा दिया जाए जिससे छात्रों के दिमाग में क्यों और कैसे जैसे सवाल न उठने लगें। शिक्षा बजट में कटौती (उप्र की योगी सरकार ने 90% कटौती कर दी), सीटों में कटौती, शिक्षक और छात्र आंदोलनों का दमन, प्रस्तावित गुरुकुल प्रणाली की राष्ट्रवादी शिक्षानीति, सब इसी इंतजाम का हिस्सा है। जहां तक शिक्षकों की बात है, तो ज्यादातर शिक्षक होने का महत्व ही नहीं समझते नौकरी करते हैं। वे भी इसी शिक्षा प्रणाली के उत्पाद है और ज्यादातर स्वतः ज्ञान खोजने का खतरा नहीं उठाते और पीयचडी करने के बावजूद बाभन से इंसान नहीं बन पाते। मगर ज्ञान निरंतर प्रक्रिया है, शिक्षा के चलते नहीं, शिक्षा के बावजूद। किसी समाज को नष्ट करना हो तो शिक्षा को बाजारू बनाकर विकृत कर दो।
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