Saturday, August 19, 2017

बाभन से इंसान

मेरी एक कविता, 'तुकबंदी में एक सपाट बयान पर एक सज्जन ने कमेंट किया कि "इस पर अवार्ड मिलेगा तब, लालू पीयम बनेगा जब" उस पर यह जवाब लिखा गया:


बाभन के दिमाग में भरा रहता है महज लालू-कचालू
पंचगव्य के पवित्र पाखंड से रखता है दुकान चालू

होता नही उसे एहसास समता के अनूठे सुख का
बाभन से इंसान बन विरासत से मुक्ति के प्रबुद्धि का

बांचता है कथाविहान सत्यनारायण की कथा
पंजीरी खाने से बताता है भागेगी दारुण-व्यथा

खुद भी रहता है पुरुखों के पाखंड में मगन
पंजीरी खाकर गाता रहता है रटा भजन

करता हूं दुआ बाभन से इंसान बनने की
तर्क और विवेक से नई पहचान बनाने की

(ईमि: 20.08.2017)

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