हमारा समाज बुतपरस्त और मुर्दापरस्त तो है ही
कातिल भी है
बर्बर हो चुकी हैं हमारी संवेदनाएं
और क्रूरता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी हैं हमारी भावनाएं
हम न केवल कत्ल के मौन गवाह हैं
बल्कि खुद इतने घिनौने कातिल हैं
कि नौनिहालों को भी नहीं बख्शते
कोई हंगामा नहीं मचाते
63 नौनिहालों की सामाजिक हत्या पर
हां जश्न जरूर मनाते हैं चुनी हुई हत्याओं का
चाहे धोखे से महिषासुर की हत्या हो या रावण की
या फिर गोरक्षा के नाम पर
कायर कुत्तों की तरह झुंड में शेर बनने वाले बजरंगियों द्वारा
अखलाक की हत्या हो या पहलू खान की
या फिर तर्कवादी पंसारे या कलबुर्गी की
सबसे शातिरान चुप्पी तो राज्य के महामहिम की है
जो बात बात पर आड़े होथों लेते थे सरकार को
जब सरकार पर इनके नहीं दूसरे गिरोह का कब्जा था
सुनते हैं स्वयंसेवक हैं महामहिम
जो महज अपनी और अपने गिरोह की सेवा करता है
या फिर मस्जिदों में बंदेमातरम् की वीडियोग्राफी।
(ईमि: 13.08.2017)
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