सहमत। मैं हमेशा मानता हूं प्राइमरी के शिक्षकों का विशिष्ट प्रशिक्षण और विशिष्ट सामाजिक प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए, जिससे बुनियाद इतनी मदबूत हो कि उस पर कितनी भी मंजिलें टिक सकें। लेकिन बुनियाद मजबूत न हों और दुकानें चलती रहें, इसीलिए शिक्षा को पिरामिडाकार बनाया गया है, जिसमें विवि से लेकर मिडिल स्कूल तक सबको कोई-न-कोई अपने से नीचे देखने को मिल जाता है, प्राइमरी स्कूल को छोड़कर, जिन्हें जब चाहा चुनाव में लगा दिया जब चाहा जनगणना में।फिर भी मैं सभी शिक्षक मित्रों से यही आग्रह करता हूं कि समाज और सरकार की बदसलूकी के बावजूद वे बुनियाद मजबूत करने के काम की संतुष्टि से खुद को न वंचित करें। प्रोफेसर और प्रािमरी शिक्षक को लगभग बराबर वेतन तो समाजवाद में ही संभव है।
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