थे जो अपने राज़दां
दुश्मन के मुखबिर बन गये
खायी थी कसम जिसने जंग-ए-आज़ादी की
मिलते ही मौका शह के मुशाहिद बन गये
निकले थे करने जो इंक़िलाब
वित्तपोषित (यनजीओ) सुधारक बन गये
दम भरते थे जो जनचेतना के जनवादीकरण का
सेल्फहेल्प ग्रुप में मशगूल हो गये
थे जो विस्थापन-विरोधी नेता
विश्वबैंकी विकास के मुर्शीद बन गये
जिनका काम था घरों की मरम्मत
बस्तियां उजाड़ने की मशीन बन गये
मुदर्रिस का काम था जगाना ज़मीर
वे ईयमआई के आतंक से ख़ुद बेज़मीर हो गये
की जिन्होंने विज्ञान की पढ़ाई
वे अंधविश्वास के शिकार हो गये
क्या वक़्त आ गया है दोस्तों
कि दानिशमंद लक्ष्मी के पुजारी बन गये
वसुधैव कुटुम्बकम् का आया जो जमाना
लोग क्या से क्या बन गये.
(ईमिः29.04.2015)
सच है आदरणीय लोग जाने क्या से क्या बन गए।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया और विचारोत्तेजक प्रस्तुति।
शुक्रिया.
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