Inder Mohan Kapahy प्रणाम सर. राम बहादुर राय एक सज्जन व्यक्ति अौर पढ़े-लिखे वरिष्ठ, अादर्शवादी संघी हैं, विद्यार्थी परिषद के बड़े नेता रह चुके हैं. सांप्रदायिकता अौर जातिवाद की सहोदरता के चलते, लगता है, धातुविज्ञान के प्रभाव से पूरी तरह उबर नहीं पाये. मोदी-शाह की देश की नीलामी की अाक्रामक नीति के चलते, राय साहब का अाक्रोष उन तमाम वरिष्ठ संघियों का साझा अाक्रोष है जो अमूर्त राष्ट्रवाद की निष्छल भावना से संघ को जवानी समर्पित किया. इलाबाद विवि छात्रसंघ के एक पूर्व अध्यक्ष अमितशाह(बिजुका वाली बात इलाहाबाद-बनारस के कई संघियों से सुन चुका हूं) जैसे क्लीनचिटिया की मातहती की पीड़ा पार्टी में नहीं शेयर कर पाते तो मेरे जैसे पुराने सहपाठियों से कर लेते हैं. लेकिन भक्तों में भगवान की अालोचना बर्दास्त करने की प्रवृत्ति का सर्वथा अभाव होता है. राय साहब का दिनेशचालिशा धातुविज्ञान के प्रभाव के अलावा इस पीड़ा की भी अभिव्यक्ति है. यदि उन्होंने मोदी को इंदिरा गांधी से बड़ा तानाशाह बताया, तो मोदी जी के साथ रियायत किया. इंदिरा गांधी की तानाशाही गरीबी हटाओ के नाटक के साथ थी तो मोदी की गरीब हटाओ के ऐलान के साथ है. वैसे जिस अंबानी का हाथ मोदी जी की पीठ पर है उसका बाप अंबानी इंदिरा-संजय गांधी की ही कृपा से थैलीशाह बना था. गरीबी हटाओ के नाटक के अनचाहे उपपरिणाम के रूप में कुछ सकारात्मक पहलू भी थे, लेकिन अगर मोदी-शाह की दुकड़ी गरीब हटाओ ऐलान का लागू करने के लिये पार्टी के अंदर तथा बाहर जनतंत्र तथा विरोध को कुचलते हुये 5 साल तक देश नीलाम करती रही तो इतिहास में हिटलर की जगह मोदी की मिशाल दी जायेगी. जय हो.
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