क्या सोचकर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो, इस तरह तो कुछ और निखर जायेगी आवाज़़
बोलते हैं तो बोलते रहें लोग बा-इज़ाजत, अपना तो बे-इज़ाज़त है बोलने का मिज़ाज
बोलेगा न ग़र शिक्षक नाइंसाफ़ी के खिलाफ़, पैदा होगा मुल्क में एक भयभीत समाज
कल को करेगा कलंकित शिक्षक लगने देगा आज़ादी-ए-ज़ुबान पर ताले ग़र आज
शिक्षक का काम है एक भयमुक्त समाज बनाना
छात्रों को नाइंसाफी से लड़ना सिखाना
इतिहास समझने का साहस उनमें भरना
विवेकशील होने की उनकी हिम्मत जगाना
उनको निर्भीक जीवन का सुख समझाना
समानता की नई संस्कृति निर्माण करना
पढ़ाना नहीं है श्रीश्री के प्रवचन का कमाल
पढ़ाता है शिक्षक पेश कर प्रत्यक्ष मिशाल
नहीं है उसके पास कोई और विकल्प
लेना ही है उसको जंग-ए-आज़ादी का संकल्प
मिलता नहीं किसी को कुछ भी कभी खैरात में
लड़ना पड़ता है हक़ के एक-एक इंच के लिए
रहती है महफ़ूज़ सुरक्षा संघर्षों की एकता में
न कि ईयमआई के ख़ौफ या सत्ता-लोलुपता में
जरूरी है शिक्षक का उठाना अभिव्यक्ति का जोखिम
वरना करार देंगीं अगली पीढ़ियां हमें इतिहास का मुल्जिम
समझेगा जिस दिन शिक्षक शिक्षक होने की महत्ता
खत्म कर देगा धरती से ज़ुल्म-ओ-ज़ालिम की सत्ता
(ऐसे ही. ईमिः 26.04.2015)
No comments:
Post a Comment