आलोक अनिकेत बिल्कुल सहमत हूं, इसीलिये अापकी अनुमानगत जानकारी के विपरीत मैं किसी पार्टी का WHOLE TIMER क्या सदस्य नहीं हूं. कोई ML नहीं है. दर्जन से अधिक हैं, सब holier than thou belief के साथ, सभी समय-समय पर एकता की चाहत की ढोल बजाते रहते हैं. हिंदुस्तान में क्रांतिकारी अांदोलन को सत्ता के हथियारों से अत्याचार से अधिक क्षति यहां की संसदीय सोसलिस्ट- कम्युनिस्ट पार्टियों ने पहुंचाया. पथ विचलन पहले संसदीय चुनाव से ही शुरू हो गया था. मार्क्सवाद की एक मूलभूत अवधारणा है अात्मालोचना जो इनकेलिेये अछूत सी है. क्रांति किसी पार्टी की मुहताज नहीं है. जनता के कार्यक्रम से अलग पार्टी का कार्यक्रम नहीं हो सकता. 1985 में मैंने 1 लेख लिखा था -- CONSTITUTIONALISM IN INDIAN COMMUNIST MOVEMENT -- जो असमंजस में 1987 तक छपने नहीं भेजा. पिछले महीने इलाहाबाद के कुछ लडके-लडकियां मुझे मेरी झोपड़ी में मिले थे उन्हें इसकी एक फोटो-कॉपी दी है. Shakti Insaan से लेकर पढ़ सकते हैं. बहुत दिनों से कम्प्यूटर युग के कुछ लेखों को स्कैन कर के कम्प्यूटर में सेव करने की योजना कामचोरी की प्रवृत्ति की प्रबलता से अब तक पूरी न हो सकी. कई लोगों की अादत है कि किसी व्यक्ति से नाराजगी में, बिना जाने सुने साम्यवाद को गाली देने लगते हैं. बच्चों अापलोग सौभाग्यशाली पीढ़ी के हैं. 1-2 क्लिक में कोई किताब खोल लें, बस दिल से नहीं दिमाग से सोचें. अक्षय की पोस्ट पर लंबा कमेंट लिखा था. गायब हो गया अौर वास्तविक दुनियां की व्यस्तता के चलते दुबारा नहीं लिख सका, पर समय चुराकर लिखूंगा. मैं समय नष्ट नहीं निवेश करता हूं, निवेश सदा अनुमानित फायदा नहीं देता. यदा-कदा घाटा भी हो सकता है, घाटे के डर से शिक्षक निवेश बंद नहीं कर सकता. शिक्षक का काम है विद्यार्थियों को लगातार याद दिलाना कि वे चिंतनशक्ति से संपन्न हैं, उनमेॆ सोचने अौर अावाज उठाने का साहस अौर यह कि हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है अौर यह भी कि परिवर्तन की धारा अविरल है उसे जनवादी दिशा देने में योगदान का गौरव हासिल करें. शिक्षक को मिसाल से पढ़ाना चाहिये. मार्क्सवाद की अालोचना करने वालों से अाग्रह है कि वे 6 पेज -- "THESES ON GEURBACH" (2PAGES) AND Preface of "A Contribution to the Critique of Political Economy"(4 pages) -- तो अालोचना में थोड़ी प्रामाणिकता अा जायेगी तथा मार्क्सवाद की विषयवस्तु का अंदाज लग जायेगा. अनुज अग्रवाल की बात से भी सहमत हूं कि विचारों के अनुसार अाचरण. मार्क्सवाद की मूलभूत अवधारणाओं में THEORY OF PRAXIS है जो कथनी-करनी की एका के बारे में है. अंतरविरोधों से परिपूर्ण वर्ग समाजों में व्यक्तित्व का अंतरविरोध अपरिहार्य है. शासक वर्ग की विचारधारा शासक विचारधारा होती है जो सत्ता के वैचारिक अौजारों के माध्यम से युगचेतना का निर्माण करती है. मार्क्सवादी इस अंतरविरोध को समझता है अौर अपने अाचरण से शुरू कर इसकी समाप्ति का निरंतर प्रयास करता है. सिद्धांतों की सही परख तभी होती है जब खुद पर लागू हो.अाप सही कह रहे हैं कि मार्क्सवाद दुनिया को समझने का एक गतिमान विज्ञान है अौर उसे बदलने की विचारधारा. जो लोग इस धर्म बनाते हैं वे प्रतिक्रांतिकारी हैं. इन्ही लोगोंका मजाक बनाते हुये मार्क्स ने कहा था कि शुक्र है खुदा का कि मैं मार्क्सवादी नहीं हूं. जो लोग तथाकथित मार्क्सवाद या तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं, वे या तो मार्क्सवाद या धर्मनिरपेक्षता को सही मानते हैं या जानने की झंझट उठाये बिना इसे मानने वालों को तथाकथित करार देते हैं. यदि सही है तो उसे उसके छद्म अनुयायियों से मुक्त कर सही दिशा दें. किसी ने किताबी ज्ञान का तंज कसा था. पढ़ना-समझना परिवर्तनकामिता की पहली शर्त है. फांसी से चंद दिनों पहले विद्यार्थियों के नाम भगत सिंह का खत जरूर पढ़ें. मैंने शेयर किया था. नेट पर उपलब्ध है. मौत के चंद लमहों पहले तक पढ़ते रहे. भावनाओं या स्वहित विद्रोह बागियों का विद्रोह है जिसकी दिशाहीनता उसे नष्ट कर देती है. विचारों पर अाधारित विद्रोह क्रांति है. महिलाओं, दलितों, किसानों अादिवासियों. विद्यार्थियों के जारी अांदोलन क्रांति की निरंतरता के हिस्से हैं. वामपंथी अांदोलनों की जड़ता तथा साम्राज्यवादी, भूमंडलीय पूंजी की मुखर अाक्रामकता के इस अंधे युग में क्या करना है. मुख्य काम है युगचेतना के विरुद्ध सामाजिक चेतना का जनवादीकरण. बाकी अगली क्लास में.
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