Monday, April 13, 2015

कश्मीर

कश्मीर में अाज भी कुछ पंडित हैं. सबसे पहले मैं 1980 में कशमीर गया था अौर यह देखकर सुखद अाश्चर्य हुअा था कि बसावट (गांवों की भी) ghettoized नहीं थी तथा गुलाम मोहम्मद भट्ट अौर कृष्णमोहन भट्ट के घर बगल-बगल, खान-पान साथ-साथ. कश्मीरी मित्रों के साथ श्रीनगर की ही तरह झेलम के दोनों तरफ बसे बारामुल्ला अौर पास के पहाड़ी गांवों की शैर की यादें 30 साल बाद जनहस्तक्षेप की जांच टीम के सदस्य के रूप में यात्रा के दौरान टीस रहीं थी. हम श्रीनगर में घाटी में कश्मीरी पंडितों के संगठन के युवा अध्यक्ष से मिले जिनका लालबाग में व्यापार है. उन्होने बताया कि वे बिल्कुल असुरक्षित नहीं महसूस करते अौर यह कि यदि पंडितों का शरणार्थी स्टेटस अौर अारक्षण तथा वजीफा बंद कर दिया जाय तो काफी पंडित वापस अा जायेंगे. 1 गांव में तीन पंडित परिवार रहते हैं बाकी 31 फसल के समय अाते हैं अौर चले जाते हैं. उनके घर के बाहर छोटा सा मंदिर जिसके बाहर मंद गति से टपकता नल पड़ोसी मुसलमान परिवारों के साथ साझा करते हैं. धाराओं का ज्यादातर पानी सेना ले लेती है. यह गांव बारामूला से पुकवामा के रास्ते में है. हॉर्टीकल्चर समृद्ध श्रीनगर से शोपियन के रास्ते में हम 2 गांवों में रुके. 1 गांव में 5 परिवार मिले जिनके बिल्कुल पड़ोस में मुसलमानों की बस्ती है. इनमें 2 परिवार के सदस्यों की सरकारी नौकरी थी. बाकी बड़े-बड़े खाली घर सही सलामत थे, हमारे गांव में तो 2-4 महीने खाली घर के ईंट तक उखाड़ ले जाते हैं. अभी बस इतना.

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