Tuesday, April 28, 2015

यूटोपिया

वक़्त से पीछे चलता पोंगापंथी
साज़िश रचता है भविष्य कि विरुद्ध
करके स्थापित महानताएंं किसी कल्पित अतीत में
करता नीलाम मुल्क पहनकर राष्ट्प्रेम का मुकुट

भेड़ सा वक़्त के साथ चलता है नासमझों का हुजूम 
मान कर नियति मौजूदा हालात को 
बिताता है ज़िंदगी निजांम की जर्जर मशीन के पुर्जों की तरह
बन जाता है अनजान प्रतिधरोक प्रगति का ओढ़कर विकल्पहीनता की चादर

वक्त से आगे रहता है युगद्रष्टा 
देखता है सपने एक नई दुनियां के
जहां मेहनत की लूट न हो हरामखोरी की छूट न हो
जिंदा कौमें कभी विकल्पहीन नहीं होती
विकल्हीनता को मानता मुर्दा कौमों की निशानी
बनाता है नक्शा एक सुंदर विकल्प का
होता है जिसमें शोषण मुक्त दनिया का वैकल्पित निजाम
लोग चिल्लते हैं यूटोपिया यूटोपिया 

मिलता नहीं अंजाम जब तक किसी बात को 
लोग उसे हवाई महल या यूटोपिया कहते हैं
1917 के अक्टूबर तक सोच नहीं सकता था कोई
बात उन 10 दिनों की हिल गई थी दुनिया जिससे
यूटोपिया थी मजदूर क्रांति की बात तब तक
यूटोपिया थी यह बात 1950 के दशक में
कि कोई अश्वेत बन सकता है अमेरिकी राष्ट्रपति
उतार दिया गया था जब बस से रोज़ा पार्क को 
गोरे को सीट न देने के लिये
नायिका बनी जो नागरिक अधिकार अांदोलन की
यूटोपिया होता यह ख्याल कि दफनाई जायेगी वह
जॉर्ज वाशिंगटन की कब्र की बगल में
यूटोपिया होता कहना हमारे बचपन में
हुक्मरान होना एक दलित महिला का 
और ब्राह्मणों द्वारा उसका चरणचुंबन
इसीलिये लगता है सच की तूती की बात यूटोपिया
कि अब तक झूठ न लताड़े गये हैं
जब जागेगा मज़दूर किसान
लायेगा ही नया विहान 
तब सच की तूतू बलेगी अौ झूठ लताड़ा जायेगा
(ईमिः27.04.2015)

No comments:

Post a Comment