Saturday, April 18, 2015

लल्लापुराण 161 (शिक्षा अौर ज्ञान 54)

Ramadheen Singh यहां कौन चीन-रूस की बात कर रहा है? चीन-रूस तो कब के केशरिया हो चुके, समय से कितने पीछे रहते हैं अग्रज? धंधा तो "नेता" करता है जो सुविधानुसार टोपी बदलता है. देखते नहीं हैं भाजपा के लगभग अाधे विधायक पराने काँग्रेसी हैं अौर कुछ अंबेडकरी राम. यहां लाल-पीले की तो कोई बात ही किसी ने नहीं किया. क्या अग्रज अाप इतने वरिष्ठ राजनीतिज्ञ होते हुये अाम बजरंगियों की तरह मुद्दा कुछ रूस-चीन/लेनिन-माओ के भूतों की गिरफ्त में अा जाते हैं. सार्वभौमिक विचार देश-काल की सीमा से परे होते हैं, जैसे कि सभ्यता का इतिहास अमीरी-गरीबी के द्वंद्व का इतिहास है. वैसे भी देशज के चक्कर में मनुस्मृति का गणगान तो नहीं कर सकता. कौटिल्य के शासन-शिल्प के विचारों पर मगध का कॉपीराइट नहीं है, जिसका प्रभाव लगभग 2,000 साल बाद मैक्यावली के विचारों पर दिखता है. हां संघ-परिवार की कॉरपोरेटी राष्ट्रवाद जरूर अायातित है -- गणवेश तथा विचारधारा समेत. यूरोपियन तर्ज पर सावरकर पितृभूमि की बात करता है, मातृभूमि की नहीं. किसानों की बेदखली संघपरिवार की योजना मौलिक न होकर 17-18वीं शताब्दी यूरोप के इतिहास में बर्बरता की मिशाल समझे जाने वाले ENCLOSURE MOVEMENT का वीभत्स अनुकरण है. धर्मोंमाद की राजनीति, संगठन के अंदर-बाहर अधिनायकवादी नेतृत्व, असहमति की अस्वीकृति तथा बजरंगदल जैसे लंपट गिरोह की अवधारणा सब कुछ तो मुसोलिनी-हिटलर की हिंदू-राष्ट्रवादी नकल ही है. अापकी इस पीड़ा का साझेदार हूं कि अशिक्षित इलाहाबाद नेहरू जैसे विचारक को चुनता था तथा शिक्षित इलाहाबाद अतीक अहमद अौर कपिलमुनि जैसे बाहुबलियों को. इसीलिये बार बार कहता हूं कि शिक्षा अौर ज्ञान में 36 का अांकड़ा है. अौर इसीलिये शिक्षित जाहिलों का प्रतिशत अशिक्षित जाहिलों से अधिक है. पीयचडी-प्रोफरी के बावजूद जो जन्म के जीववैज्ञानिक संयोग की अस्मिता से ऊपर उठकर हिंदू-मसलमान/बाभन-भूमिहार.. से इंसान न बन सके, वो जाहिल नहीं तो अौर क्या है? जो टुच्चे निजी/दलीय हितों के लिये सार्वजनिक हितों की कुर्बानी दे उसे अाप क्या कहेंगे? जिसे यह नहीं मालुम कि पूंजीवाद में केवल पूंजीपति ही संचय कर सकता है, बाकी संचय के भ्रम में रिश्वतखोरी अौर दलाली करते हैं. मान्यवर अाइये पहले हिंदू-मुसलमान से इंसान बने, यही किसी भी समाज की खुशहाली का मूलमंत्र है. वाकई राष्ट्रहित अौर देशज विचारों के हिमायती हैं तो जनविरोधी सरकारी मंसूबों को निस्त करने के लिये विस्थापन-विरोधी अांदोलनों का सहयोग करे. सोनभद्र के कनहर परियोजना के विस्थापितों के अांदोलन पर उ.प्र. की सरकार ने बर्बर पुलिसिया हमला किया है, उनकी पीड़ा महसूसिये. प्रणाम.

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