Friday, April 3, 2015

फुटनोट 27

मणी बाला तुम्हारे पिताजी या तो बहुत शरीफ हैं या घर में लोहे का सोंटा नहीं रहा होगा. दर-असल उन्होने अपनी सुबहा को सत्यापित करने के लिये पूछा अौर तुम बहकावे में अा गयी. मेरे पिताजी ने तो इश्क का ककहरा सीखने की उम्र के पहले ही (वैसे मैं प्राइमरी पास करने की तरह कई काम अनुमानित उम्र के पहले ही कर लेता था) बिना देखे ही (क्या पता देखा रहा हो) मेरे लिये लड़की पसंद कर लिया अौर मित्रता के चक्कर में मित्र की संस्कारी कन्या के मत्थे, मुझ जैसा, पागल, अावारा, नास्तिक मढ दिया, जिसे वे सहनशक्ति की मिशाल पेश करते हुये अब तक झेल रही हैं. बचपन के मेरे उपनामों में एक पागल भी था. य़ह नाम भी जन्म के समय ईश नाम रखने वाले मेरे बाबा (दादा जी) ने ही 5-6 साल का होने पर रखा था. यह उपाधि "प्रशंसा" के लिये किये गये किसी काम पर मिली थी, जिसकी कहानी फिर कभी. क्षमा करना, फुटनोट की बुरी अादत से कभी कभी टेक्स्ट नेपथ्य में चला जाता है. चलो जब लंबा हो ही गया तो इसे थोड़ा अौर विस्तार दे देता हूं. गवना के 2-3 दिन बाद किसी बात पर बाबा ने कहा "ई पगला किहे होई" मेरी पत्नी को लगा कि कहीं धोखे से उनकी शादी किसी पागल से करा दी गयी. खैर, विषय पर वापस अाता हूं. मेरे पिताजी ने मुझसे नहीं पूछा तो मैं अपनी बेटियों से क्यों पूछता, अौर इंतजार करता रहा कि खुद बतायें. कई साल से एक ही "दोस्त" (इश्क जैसे दुशमन से होता हो!!) के साथ घूम-टहल रही थी, जब शादी करने का फैसला किया तब बताया. तुम अब अगला इश्क करना तो पिताजी को फोन करना कि तुमने "अदालत में शादी कर ली है, अापके अाशिर्वाद के लिये दिल तड़प रहा है, वैसे अाप चाहेंगे तो दुबारा वैदिक रीति से भी कर सकती हूं" यह मत बताना कि मैंने यह तरकीब बताया. मेरी बेटी ने तो अदालत में शादी की मेरी सलाह ठुकरा दिया था. दूसरी तरकीब यह है कि किसी दोस्त के घर 2-3 दिन रुक जाओ अौर पहले दिन की डेडलाइन के 3-4 घंटे बाद (पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट से पहले) फोन कर दो कि तुम घर से भाग गयी हो, अौर कि अब कल फोन करूंगी, कह कर फोन काट दो अौर 4-5 घंटे फोन उठाओ मत. इस बीच पिताजी तुम्हारी मां की बहुत बातें सुन चुके होंगे -- जैसे कि अापके चलते मेरी बच्ची किस हाल में होगी, समझदार है सोच समझ कर कोई निर्णय लेगी.... अगर मेरी बेटी को कछ हुअा तो.... वगैरह वगैरह ... तब पिताजी का यसयमयस अायेगा कि बेटी जो कहोगी वही होगा, वापस अा जाओ बेटी, तुम्हारी मां ने दाना-पानी त्याग रखा है ... वगैरह वगैरह अौर फिर वापसी के लिये इश्क के इजहार की शर्त रख देना. वैसे तुमने इससे बेहतर तरकीबें सोच रखी होंगी क्योंकि हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है. तब भी मैं बुजुर्गियत का फर्ज़ निभाये बिना कैसे रह सकता हूं. बाकी बिन मांगी सलाह बाद में.

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