Sunday, April 19, 2015

लल्लापुराण 164 (शिक्षा अौर ज्ञान 55 )

Pran Vijay Singh कोई पूर्वाग्रह नहीं है, बल्कि अपनी तो लड़ाई ही पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों के विरुद्ध है.  सिद्धांत अाधारित जीवन ही नैतिक जीवन है, सिद्धांतविहीन व्यक्ति स्वार्थसिद्धि में ही लीन रहता है जैसा कि अापने मौजूदा नेताओं के बारे में कहा. अजीब-ओ-गरीब नहीं सुपरिभाषित सिद्धांतों की विकासशील प्राचीर है. कोई अलग अच्छी राय दे कर देखिये, सम्मान से मान लूंगा. अभी तक तो किसी ने दी नहीं.  सोच में बदलाव के सिद्धांत में यकीन न करता तो एक कर्मकांडी ब्राह्मण बालक से प्रामाणिक नास्तिकता तक; बाभन से इंसान तक; शाखा की कूपमंडूकता से विवेकशीलता तक की मुश्किल यात्रा कैसे तय हो पाती. गांधी जी से सहमत हूं कि साधन की सुचिता साध्य की सुचिता जितनी ही महत्वपूर्ण है. लोग मुद्दों पर न बात कर सीधे माओ-लेनिन का जवाब मांगने लगते हैं बिना कुछ जाने अौर फैसलाकुन वक्तव्य देने लगते हैं. ऋगवेद का पन्ना नहीं पलटेंगे अौर रटी-रटाई भाषा में उसमें सारा ज्ञान-विज्ञान खोज देंगे. इसे ही तोतागीरी कहते हैं. बच्चों की गलती नहीं है यह शिक्षा प्रणाली तोते ही पैदा करती है. चिंतनशील इंसान व्यवस्था के लिये खतरनाक होते  हैं, इसके बवजूद चिंतन का दरिया अबाध है.

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