Monday, November 3, 2014

निगाहों की बातों में है एक लोचा

निगाहों की बातों में है एक लोचा
जरूरी नहीं कानों के साथ तालमेल सदा
करना चाहिये सभी को अपना-अपना काम
दिल हो संवेदन सोचे दिमाग
बाहों का अालिंगन होठों पे मुसकान
निगाहें हों चार अौर बोले जुबान
बढ़ाओ हौसला पहले सा
अांखों को बनने दो तक़लीफ के उमड़ते समंदर सा
छलकने दो उन्हें फलक पे अाये चांद सा
कहने दो वो बात अाज इस सुबह की कसम
बातों से ही टूटते हैं दिल के भरम
उठने दो तक़लीफ के समंदर से तूफान
बह जाने दो दुश्मन-ए-इश्क़ की हर दुकान
(ईमिः04.11.205)

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