Monday, November 24, 2014

तुम्हारा मौन ही तुम्हारा सद्गुण है

तुम्हारी चुप रहने की अदब ने बे-अदब बना दिया उनको
अदावत तो है बहुत दूर की बात
तुम्हारी हुक्म-ना-फरमानी भी पसंद नहीं 
तुम्हारा मौन ही तुम्हारा सद्गुण है
उससे भी  बड़ा सद्गुण है वफादारी बे-सवाल
बोलने में तोता सी अदब है सोने में सुहागा
चलनें में सलीका-ए-भेंड़ सद्गुणों में चार-चांद लगाता
भोग्या ही नहीं पूज्या भी थी तुम पूर्वजों की सदियों तक
महान सम्राटों की वफादार प्रजा की तरह
थी क्योंकि तुम सर्व-सद्गुण-संपन्न
रामजी के बीर भालू-बानरों की तरह
भूल गीता के चिंतन-मुक्त महान कर्मोपदेश
विवेक के वर्जित क्षेत्र में प्रवेश की धृष्टता
तोड़कर गौरवशाली नारी-मर्यादा की सीमायें 
सावित्री-सीता की महान सांस्कृतिक परंपरायें
तलाश-ए-दीनिश की तुम्हारी नापाक कोशिस
बा-अदब मौन से बे-अदब मुखरता
सद्गुणों के पिजरे को तोडने की मूर्खता
अाज़ादी-ओ-हक़ की ऊलजलूल बातें
प्यार मुहब्बत की पापी खुराफातें
बता दूं तुम्हारे दुर्गुणों की पूरी कहानी
याद अा जायेगी मनु महराज को उनकी नानी
न रास  आने के लिय़े इतनी ही अदावत क्या कम थी
विमर्श में जो तुमने बराबरी की बेहूदी छौंक लगा दी
बातें विमर्श तक रहतीं तब भी गनीमत थी 
तुमने तो काफिराना जंग-ए-अाज़ादी छेड़ दी
है बात अब इतना अागे बढ़ गयी 
कि पतनशील पत्नियों की हद तक चली गयी
संक्रामक हो गया है नारी प्रज्ञा-ओ-दावेदारी का लफ़डा
बेलगाम हो गया है पतनशील पत्नीत्व का अश्वमेध घोड़ा
कर रहे हैं वे बर्दाश्त बेबस रखके पत्थर दिल पे 
देख कर भी मुल्क जाते हुये रसातल में. 
(पतनशील पत्नियों की अनमानतः सरगना(नामकरण उन्हीं का मौलिक) नीलिमा चौहान के एक सुंदर शेर पर टिप्पणी करते हुये लिखा गया सो उन्हीं को समर्पित)
(ईमिः 25.11.2014)





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