Tuesday, November 4, 2014

कुछ कहती है यह तस्वीर जरूर


कुछ कहती है यह तस्वीर जरूर
भंगिमा में दिखता कल के इश्क का सरूर 

वर्जनाओं के भार से दबी मर्यादित मुस्कान
मन चाहता है भरना मगर संस्कारों से परे उड़ान
हिचक दिखती  तोड़ने में समाज की मर्यादा 
रोकती है मन को उड़ने सी ऊपर बहुत ज्यादा 
बेचैन आँखें निहारती हैं ख़्वाबों के अनन्त में 
चहकती हैं पक्षियां जैसे मतवाले बसंत में 
(इमि/०४.११.२०१४)

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