दोगला है ज़र का
निजाम
कहने से दीगर करता है काम
कहने से दीगर करता है काम
करता चोरी धर
कोतवाल का भेष
भरता दिलों में
सांप्रदायिकता का विष
मनाता है मगर स्वच्छता
दिवस
बांटता है फिरकों
में देश
देता राष्ट्रीय
एकता का संदेश
राष्ट्रीय एकता दिवस
उसके नाम पर
चढ़ा था सेना
लेकर जो मुल्क के अवाम पर
टूटी नहीं
निरंतरता वर्दी के किरदार की
था पहले अंग्रेजी
हुक़्म अब आज्ञा सरदार की
थैलीशाहों को बेचते
हैं देश
बताते जिसे राष्ट्रीय
विनिवेश
वालमार्ट को
सौंपते हैं फुटकर बाजार
कहते हैं होगा इसीसे
राष्ट्रीय उद्धार
होंगे इससे करोड़ों
बेरोजगार
बताते इसे ये समय
की पुकार
होता पीठ पर
अंबानी का हाथ
बताते खुद को
जनता के साथ
समझने लगी है
जनता अब धोखे की विसात
दिखने लगे हैं
उसको बाज़ार के अदृष्य हाथ
चढेगी जनचेतना पर
जब शान जनवादी
शुरू होगी तब
निज़ाम-ए-ज़र की बर्बादी
होगा तब दुनियां
का मेहनतकश आज़ाद
चारों दिशाओं में
गूंजेगा इंक़िलाब ज़िंदाबाद
(ईमिः
02.11.2014)
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