Saturday, November 1, 2014

ज़र का निजाम


दोगला है ज़र का निजाम
कहने से दीगर करता है काम
करता चोरी धर कोतवाल का भेष
भरता दिलों में सांप्रदायिकता का विष
मनाता है मगर स्वच्छता दिवस
बांटता है फिरकों में देश
देता राष्ट्रीय एकता का संदेश
राष्ट्रीय एकता दिवस उसके नाम पर
चढ़ा था सेना लेकर जो मुल्क के अवाम पर
टूटी नहीं निरंतरता वर्दी के किरदार की
था पहले अंग्रेजी हुक़्म अब आज्ञा सरदार की
थैलीशाहों को बेचते हैं देश
बताते जिसे राष्ट्रीय विनिवेश
वालमार्ट को सौंपते हैं फुटकर बाजार
कहते हैं होगा इसीसे राष्ट्रीय उद्धार
होंगे इससे करोड़ों बेरोजगार
बताते इसे ये समय की पुकार
होता पीठ पर अंबानी का हाथ
बताते खुद को जनता के साथ
समझने लगी है जनता अब धोखे की विसात
दिखने लगे हैं उसको बाज़ार के अदृष्य हाथ
चढेगी जनचेतना पर जब शान जनवादी
शुरू होगी तब निज़ाम-ए-ज़र की बर्बादी
होगा तब दुनियां का मेहनतकश आज़ाद
चारों दिशाओं में गूंजेगा इंक़िलाब ज़िंदाबाद

(ईमिः 02.11.2014)


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