वैचारिक दिवालियेपन का शिकार तो हर शासक दल है लेकिन इंदिरा जी के जमाने में कांग्रेस में शुरू हुय़ी चारण प्रवृत्ति ने इसे समाप्ति तक पहुंचा दिया. वही चारण प्रवृत्ति कांग्रेस की सहोदर भाजपा को भी नष्ट करेगी. मुर्दा कांग्रेस में जान कोई करिशमा ही डाल सकता है, लेकिन चारणों की जमात में फिलहाल तो किसी करिश्में की संभावना क्षीण है. भूमंडलीय पूंजी की इन दलाल पार्टियों से ऊपर उठकर जनता को अपना विकल्प खुद तैयार करना होगा. जब तक जनता भक्तिभाव से किसी चमत्कार के भ्रम में रहेगी, मोदी जैसे कॉरपोरेटी लफ्फिाजों से ठगी जाती रहेगी. चमत्कार की अाशा का भक्तिभाव शिक्षितों में अशिक्षितों से अधिक है.
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