Sunday, November 2, 2014

ईमान की तिजारत

बिक रहा है हाट में खुले-आम ईमान
बेईमान है क्योंकि ज़र का निज़ाम
कल तक करते थे जो ईमान का व्यापार
देते थे ग्राहकों को बेहिचक उधार
जानते नहीं ये व्यापारी राज की बात
ईमान की तिजारत का होता अलग अंदाज़
लगा उनको ये घाटे का कारोबार
तख्ती हटाने को हो गये लाचार
चलने लगा बेईमानी का धंधा धुआंधार
तख्ती के बिना ही चलता यह कारोबार
तख्ती है मगर हर व्यापाररी की अभिलाषा
बदल दिया उसने ईमानदारी की परिभाषा
रंग-चुंग कर लगा दी उसने पुरानी तख्ती
शब्द-कर्म की खाई कुछ को ही दिखती
कुछ बनेगा ही बहुत एक-न-एक दिन
तब शुरू होगा इन तिजारतियों का दुर्दिन
(ईमिः03.11.2014)


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