Tuesday, November 11, 2014

कलम की विरासत

जब भी लिखता है तुम्हारा कलम क से कविता
आबादी-ए-कयानत दो पर समेट देता
दो दिलों की रस्साकशी है निजी आस्था बात
न करे क़लम सार्वजनिक घुसपैठ की खुराफ़ात
बढ़ाओ अपनी दृश्टि सीमा का फलक
तुम और उनसे आगे आसमां तलक
भूल जायेंगे लोग तुम्हारी शायरी
है क्योंकि यह इक शख्स से इश्क की डायरी
याद रखेंगे लोग बाबा नागार्जुन की बात
देता है कलम उनका चूल्हों के रुदन को आवाज़
भूल जायेंगे लोग दो दिलों के लफड़ों की कहानी
रहेंगी पाश की बातें मगर उन्हें याद जुबानी
जंग-ए-आज़ादी के ज़ज्बे को जो देती रवानी
याद रखेंगे लोग फ़ैज़ के कलम के ज़ज़्बात
करता जो मेहनतकश के हक की बात
याद आता है कलम मजाज़ का
लिखता है जो वेदना बेवा के सबाब का
करता कलम शलभ श्रीराम का सवाल-दर-सवाल
नफ़स-नफ़स कदम-कदम ढूंढ़ता जवाब-दर-जवाब
हर सवाल का जवाब लिखता है इंक़िलाब इंक़िलाब
भरता जब शाहिर का कलम परवाज़
जंगखोरी के ख़िलाफ़ करता बुलंद आवाज़
नहीं भूलेंगे लोग हबीब जालिब के कलम का पैनापन
दिखाता है जो जंगफ़रोश राष्ट्रवाद का खोखलापन
इब़्न-ए-इंशान के कलम की नज़र थी माशा-अल्ला
लिखता दुनियां के समझदारों की जुबां पे लगा ताला
याद रखेंगे लोग गोरख पांडे के बोल
खोलते हैं जो दोगली सभ्यता के पोल
नहीं भूलेंगे लोग अदम गोंडवी का कलम
लिखता है जो चूल्हे पे खाली पतीली का मरम
सलाम करता हूं बर्टोल्ट ब्रेख़्ट के कलम को
ललकारता है जो ज़हां के ज़ुल्म-ओ-सितम को
लंबी है मेरे कलम के पुरखों की विरासत
सिखाती गरीब-ओ-गुर्बा के हक़ की सियासत
नहीं करेगा कलम मेरा विरासत को शर्मसार
करता रहेगा जनवादी सोच का प्रसार
दो विस्तार अपने कलम के फलक को
ग़म-ए-ज़हां में मिला दो ग़म-ए-दिल को
हुई नहीं है अभी बात इसकी पूरी
करना है तय कलम को लंबी दूरी

(ईमिः 12.11.2014)

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