Saturday, November 15, 2014

क्षणिकाएं 38 (591-600)

५९१
निगाहों की बातों में है एक लोचा
जरूरी नहीं कानों के साथ तालमेल सदा
करना चाहिये सभी को अपना-अपना काम
दिल हो संवेदन सोचे दिमाग
बाहों का अालिंगन होठों पे मुसकान
निगाहें हों चार अौर बोले जुबान
बढ़ाओ हौसला पहले सा
आंखों को बनने दो तक़लीफ के उमड़ते समंदर सा
छलकने दो उन्हें फलक पे अाये चांद सा
कहने दो वो बात अाज इस सुबह की कसम
बातों से ही टूटते हैं दिल के भरम
उठने दो तक़लीफ के समंदर से तूफान
बह जाने दो दुश्मन-ए-इश्क़ की हर दुकान
(ईमिः04.11.205)
५९२
कितनी अजीब है दिलों के विनिमय की बात 
बनावटी लगते हैं उनके लेन-देन के जज़्बात 
मुहब्बत का मुखालिफ है दिलों का कारोबार
बुनियाद-ए-इश्क है साझी समझ-ओ-सरोकार   
दिल न हुआ हो गया पानी का गुब्बारा 
तुम मेरा ले लो और मैं ले लूँ तुम्हारा 
दिल नहीं है पैसे सी  लेन-देन की चीज़ 
विवेक और अंतरात्मा का है अज़ीज़ 
रक्खो अपने-अपने दिल अपने ही पास 
मिले जब किसी से कर लो उसका साथ 
बढ़ने लगे अगर दो दिलों की दूरी 
धोने को रिश्ता नहीं कोइ मजबूरी 
मिले गर दुबारा दिल किसी दिल से 
मुहब्बत के जाम पियो बैठ साथ उसके 
लगती है ये कविता मर्यादा के खिलाफ 
बुरा लगे सच कड़वा  तो कर देना माफ़  
बयान करते सभी के दिलों का ये अलफ़ाज़
मानेगा नहीं कोई छुपाने को दिल का राज 
कर दो दिल को सभी बंधनों से आज़ाद 
भरेगा उड़ान अक्ल-ओ-ज़मीर के साथ 
(इमि/०४.११.२०१४) 
५९३
कुछ कहती है यह तस्वीर जरूर
भंगिमा में दिखता कल के इश्क का सरूर
वर्जनाओं के भार से दबी मर्यादित मुस्कान
मन चाहता है भरना मगर संस्कारों से परे उड़ान
हिचक दिखती मगर तोड़ने में समाज की मर्यादा
रोकती है मन को उड़ने सी ऊपर बहुत ज्यादा
बेचैन आँखें निहारती हैं ख़्वाबों के अनन्त में
चहकती हैं पक्षियां जैसे मतवाले बसंत में
(इमि/०४.११.२०१४)
594
इसका जीवन इसका सन्देश है
मानता साहब का आदेश है
साहब को हो जब सीटियाबाजी का शौक
बन  जाता भडुआ  बेख़ौफ़
दिखाना हो मुसलमानों को आतंकवादी
फर्जी मुठभेड़ों से कम करता उनकी आबादी
करता बहू बेटियों की इज्ज़त की बात
आशिकी पर मारता है लात
होती दो कौमों में गर मुहब्बत की बात
चिल्लाता है लव जेहाद लव जेहाद
ह्त्या-बलात्कार में सन्नाम
लेता रहता गांधी का नाम
गांधी पर था सवार आज़ादी का जुनून
तोड़ा उनने अंग्रेज़ी क़ानून
अहिंसा से दिया था अंग्रेजो को संत्रास
दे दिया था गांधी को कारावास
अमित शाह भी गया था जेल
जलाकर सामासिक संस्कृति का मेल
है यह सरगना ह्त्या-बलात्कार का
पैगम्बर हिंदुत्व के नरभक्षी संस्कार का
है सर पर जब तक साहब का हाथ
तोड़ेगा देश दिन-ओ-रात
साहब को कल्कि अवतार बताता
खुद को आधुनिक गांधी बतलाता
आयेगी जब जनवाद की आंधी
उड़ जायेंगे सब नकली गांधी
(इमि/०६.११.२०१४)
595
हम तो  हैं जन्मजात अावारा
नाकारा कहते हमें मशीहा अनुशासन के
कल पुर्जे प्रशासन के
होते नहीं जब तर्क सरमाये के दलालों के पास
अावारगी को कह देते पागलपन का बकवास
(ईमिः06.11.2014)
596
अलीगढ़ विवि के कुलपति ने लड़कियों के  लाइब्रेरी जाने पर यह कह कर रोक लघा दी कि इससे लाइब्रेरी में लड़कों की भीड़ मच जायेगी.

खौफ बन गयी है कठमुल्लों के लिए लड़कियों की बौद्धिक उड़ान 
बन्दिश के तिनकों से चाहता है रोकना नारी चेतना का तूफ़ान 
जो दरिया झूम के उट्ठा है (फैज़) नारी प्रज्ञा और दावेदारी का 
मटियामेट कर देगा वैचारिक किला मर्दवादी मक्कारी का 
यह कुलपति है विश्वविद्यालय का कि कोई सडक छाप मुल्ला
 करता है बेशर्मी से इज़हार-ए-जहालत खुल्लम-खुल्ला   
लड़किया गर लाइब्रेरी गयीं तो टूट पडेगा नैतिक आसमान 
देख वहां लड़कियों को मचेगा लार चाटते लड़कों में घमासान 
लड़कियों को समझता है माल और सभी लड़कों को लम्पट 
पता नहीं किस पाठशाला में पढ़ा है  यह दकियानूसी कमबख्त 
(इमि/११.११.२०१४)
597
जब भी लिखता है तुम्हारा कलम क से कविता
आबादी-ए-कयानत दो पर समेट देता
दो दिलों की रस्साकशी है निजी आस्था बात
न करे क़लम सार्वजनिक घुसपैठ की खुराफ़ात
बढ़ाओ अपनी दृश्टि सीमा का फलक
तुम और उनसे आगे आसमां तलक
भूल जायेंगे लोग तुम्हारी शायरी
है क्योंकि यह इक शख्स से इश्क की डायरी
याद रखेंगे लोग बाबा नागार्जुन की बात
देता है कलम उनका चूल्हों के रुदन को आवाज़
भूल जायेंगे लोग दो दिलों के लफड़ों की कहानी
रहेंगी पाश की बातें मगर उन्हें याद जुबानी
जंग-ए-आज़ादी के ज़ज्बे को जो देती रवानी
याद रखेंगे लोग फ़ैज़ के कलम के ज़ज़्बात
करता जो मेहनतकश के हक की बात
याद आता है कलम मजाज़ का
लिखता है जो वेदना बेवा के सबाब का
करता कलम शलभ श्रीराम का सवाल-दर-सवाल
नफ़स-नफ़स कदम-कदम ढूंढ़ता जवाब-दर-जवाब
हर सवाल का जवाब लिखता है इंक़िलाब इंक़िलाब
भरता जब शाहिर का कलम परवाज़
जंगखोरी के ख़िलाफ़ करता बुलंद आवाज़
नहीं भूलेंगे लोग हबीब जालिब के कलम का पैनापन
दिखाता है जो जंगफ़रोश राष्ट्रवाद का खोखलापन
इब़्न-ए-इंशान के कलम की नज़र थी माशा-अल्ला
लिखता दुनियां के समझदारों की जुबां पे लगा ताला
याद रखेंगे लोग गोरख पांडे के बोल
खोलते हैं जो दोगली सभ्यता के पोल
नहीं भूलेंगे लोग अदम गोंडवी का कलम
लिखता है जो चूल्हे पे खाली पतीली का मरम
सलाम करता हूं बर्टोल्ट ब्रेख़्ट के कलम को
ललकारता है जो ज़हां के ज़ुल्म-ओ-सितम को
लंबी है मेरे कलम के पुरखों की विरासत
सिखाती गरीब-ओ-गुर्बा के हक़ की सियासत
नहीं करेगा कलम मेरा विरासत को शर्मसार
करता रहेगा जनवादी सोच का प्रसार
दो विस्तार अपने कलम के फलक को
ग़म-ए-ज़हां में मिला दो ग़म-ए-दिल को
हुई नहीं है अभी बात इसकी पूरी
करना है तय कलम को लंबी दूरी
(ईमिः 12.11.2014)
598
अंतरात्मा की आवाज़ है मेरी कविता
ज़ज्बातों का परवाज़ है मेरी कविता
इंकिलाब का पैगाम है मेरी कविता
गरीब-ओ-गुर्बा के नाम है मेरी कविता
(ईमिः 13.11.2014)
599
काफी कभी कुछ भी नहीं होता
कुछ् पाकर कुछ् और पाने का मन होता
लेकिन इस कुछ की होती अलग अलग परिभाषा 
अलग अलग लोगों की अलग अलग अभिलाषा
कुछ् चाहते हैं  अगली मंजिल अमीरी के वहम-ओ-ग़ुमाँ की
कुछ् की खाहिस बदलाव के अगले फिर पडाव की
(ईमिः 13.11.2014)
600
सपने में दिखे उसे प.पू. गुरूजी
बोंले कम है व्यक्तित्व का गुरुत्व
खुलते ही अांख वह हकबका कर उठा
डाल लिया पजामें में  इजारबंद
किसी ज्यादा घनत्व की धातु का
जानता नहीं था वह इस धातु के रासायनिक गुण
कि बदलता है इसका अायतन तापमान के साथ
होते ही मौसम गर्म बढने लगा इजारबबंद का अायतन
अौर घटने लगा घनत्व
समझते जब तक वैज्ञानिक घनत्व घटने का राज
पिघलने लगा इजारबंद
ठोस से द्रव में तब्दील हो रिसने लगी धातु
सरकने लगी कमर के नीचे
गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार
कोसने लगा प.पू.गुरूजी को
जो उत्तरी ध्रुव को बिहार में बैठाकर चले गये
धातु अपने रासायनिक गुण के अनुसार लेती रही अाकार
घटने लगा गुरुत्व इजारबंद का
अागे की बात अगली खबर के बाद.
(ईमिः16.11.2014)












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