है इंसान रहकर दुनियां में ही तलाश-ए-खुदी करता
जंगल के एकाकीपन में इंसान महज एक मासूम जंतु था
थीं उसके अंदर महज अात्म-प्रेम की भावनायें
अंतरनिहित किंतु सुप्त थी बाकी इंसानी संभावनायें
निकलकर प्रकृति की गोद से बनाया जब समाजं
शुरू किया समझना तभी इंसानी प्रवृत्तियों का राज
होते जो इंसान भीरु अपनाते पलायनवाद
परजीवीपन को बताते दैविक अाध्यात्मवाद
ताकती हो जब चमत्कार मुल्क की अाबादी
ओढ़ लबादा धर्म का बन जाते साधू-संयासी
करते अनहोनी के तिलिस्म की तिजारतॉ
अाध्यात्मिक ढोंग की करते ये सियासत
रहेगा जब तक धर्म-भीरु बडा तपका इंसानों का
फलता-फूलता रहेगा धंधा पाखंडी शैतानों का.
(ईमिः28.11.2014)
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