Thursday, March 6, 2014

विकास दर

विकास दर
बढ़ता ही जाता है गरीबी और भूख का राज
होता है जैसे-जैसे पूंजीवाद का विकास
करता है इंसान उत्पादन के नये तरीके ईज़ाद
हो जाती श्रम-शक्ति की उत्पादकता इफरात
बढ़ता है श्रम का उत्पाद, होता समृद्ध समाज
हड़प लेता सबकुछ मगर थैलीशाह दगाबाज
लेती जितनी ही ऊंची उछाल विकास दर
होता उतना ही परेशान और हताश कामगर
निकलेगी ही इस हताशा से एक नई आशा
होगी वर्गचेतना से दूर एकाकीपन की निराशा
होगा मेहनत के फल पर मेहनतकश का अधिकार
होगा मानव-मुक्ति का सपना जब साकार
बढ़ेगा जितना ही तब विकास दर
उतना ही होगा खुशहाल कामगर
(ईमिः08.03.2014)

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