देश के लिए तो दीवन समर्पित है और उसी के सतत प्रयास में रहते हैं. लेकिन देश का हित क्या है यही असहमति का विषय है, वर्ग समाज में पक्ष बंटे होते हैं हमें तय करना होता है हम किस पक्ष में हैं, शोषक के या शोसित के. सुविधासंपन्न कामगर अपने को शासकवर्ग का हिस्सा होने की खुशफहमी पाल लेता है मान लेता है और मिथ्याचेतना के चलते संचय का भ्रम क्योंकि पूंजीवाद में केवल पूंजीपति ही संचय कर सकता है बाकी संचय के भ्रम में कोई अनैतिक काम से नहीं हिचकते और दयनीय, तनावग्रस्त जीवनयापन करते हैं. मैंने तो अपना पक्ष किशोरावस्था में ही चुनलिया था -- शोषण-दमन, वंचना, भेदभाव और असमानता के विरुद्ध समतापूर्ण न्याय का पक्षच पूंजीपति के विरुद्ध सर्वहारा का पक्ष, धर्मांधता, जातीय उंमाद और सांप्रदायिक नफरत के विरुद्ध विवेकपूर्ण मानवता का पक्ष. सीमाएं खिची हैं हमे अपना पक्ष तय करना है, सामंजस्य एक छलावा है.
युगचेतना के असर में लोग विवेक के इस्तेमाल से बचते हुए पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो पाते और अपने को वर्ग चेतना से वंचित कर कुतर्क करते हैं, इनकी भी मे में है. निराश नहीं हूं जनपक्षीय जनचेतना का उभार अवश्यंभावी है. इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता मोदियापा इतिहास को पीछे ले जाने की नाकाम साज़िश है, फिलहाल हर अमनपसंद नागरिक का कर्तव्य है कि जनसाधारण को इतिहास के विरुद्ध मोदी-टाटा-- ... की शह पर हो रही इस घिनौनी साज़िश से वाक़िफ करें. यह पब्लिक है सब जान जायेगी.
युगचेतना के असर में लोग विवेक के इस्तेमाल से बचते हुए पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो पाते और अपने को वर्ग चेतना से वंचित कर कुतर्क करते हैं, इनकी भी मे में है. निराश नहीं हूं जनपक्षीय जनचेतना का उभार अवश्यंभावी है. इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता मोदियापा इतिहास को पीछे ले जाने की नाकाम साज़िश है, फिलहाल हर अमनपसंद नागरिक का कर्तव्य है कि जनसाधारण को इतिहास के विरुद्ध मोदी-टाटा-- ... की शह पर हो रही इस घिनौनी साज़िश से वाक़िफ करें. यह पब्लिक है सब जान जायेगी.
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