इस पर तो लंबे लेख द्वारा विश्लेषण की आवश्यकता है और क्लास की तैयारी करनी है. फिर कभी. आध्यात्म और चिंतन परस्पर विरोधी हैं. आध्यात्म यथार्थ की ही समस्याओं का अमूर्तीकरण है जिससे स्वयंसिद्ध मान लिया जा सकता है क्योंकि मानव इंद्रियों के माध्यम से सत्यापन या प्रमाण से परे हैं. अध्यात्म महज एक अवधारणा है जो बाबागीरी जैसे फरेब की संभावनाओं को आधार प्रदान करता है.
मैं इस पर एक लेख लिखूंगा फुर्सत मिली तो. आध्यात्मिक जगत की अवधारणा वास्तविक जगत की विषमताओं से ध्यान हटाना और अबूझ, अपरिभाषित अमूर्त अवधारणाओं में उलझाना शासकवर्गों का एक फरेब है. आध्यातम के झंडाबरदार वास्तविक समस्याओं को गौड़ बताकर मानवता के साथ गद्दारी करते हैं. अध्यात्म के सारे पुरोधा अज्ञान फैलाने वाले धूर्त हैं. आध्यात्मिक धूर्तता के चलते ही शोेषण-दमन निर्बाध चलता है इस मुल्क में. किसी आध्यात्मिक गुऱी का नाम बताइए जो फरेबा और मक्कार न हो
शंकराचार्य भौतिकवादी बौद्ध और लोकायत दर्शनों के प्रभाव को खत्म करने के प्रयास में दुनियादारी की ठोस समस्ययाओं की समाधान ढूढ़ने में असमर्थ होे अद्वैत का रहस्यवाद रचा जिसे रामानुज ने परमार्दित किया और राम मोहन रॉय और विवेककानंद ने पुनर्परिभाषित किया. स्वामी करपात्री, त्रिडंडी महराज मेरे ननिहाल के गांव के मंदिर के निर्माता और कुलगुरू थे. ये सब सत्य की तलाश में भटके हुए लोग थे जो किसी अमूर्त काल्पनिक ब्रह्म का अवधारणा में अटक गये, इनके आधुनिक, वुकृत संसकरण संसकरण बाबा रामदेव और बापू आसाराम जैसे जनद्रोही हैं.
फिलहाल मित्र शंकराचार्य का और कुछ पढ़ने का वक्त नहीं है जितना पढ़ना है, दुनिया के लिए सार्थक और प्रासंगिक उसके ही लिए वक़्त कम है, आध्यात्म की अमूर्त और अबोध्यगम, हवाई आख्यानों के लिए कहांँ वक़्त मिलेगा. कोई ब्रह्म है कि नहीं कोी उह लोक है कि नहीं, मेरे सरोकार का विषय नहीं है. मेरे लिए जो है वही सत्य है जो आध्यातमिक सत्य है जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता वह माया और फरेब है जो हक़ीकत के दुख-दर्द से लोगों का ध्यान हटाकर किसी सुखद उहलोक के हवाई मायाजाल में उलझा देता है. इसीलिए मैंने कहा आध्यात्म चिंतन का विरोधी है क्योंकि आस्था प्रश्न से परे है. मछ और हठ बूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों को बल प्रदान करते हैं. मानवता की मुक्ति पूजा-अनुष्ठान से नहीं, शोषण-दमन और वर्चस्व के निज़ाम के खात्मे से होगी.
मैं इस पर एक लेख लिखूंगा फुर्सत मिली तो. आध्यात्मिक जगत की अवधारणा वास्तविक जगत की विषमताओं से ध्यान हटाना और अबूझ, अपरिभाषित अमूर्त अवधारणाओं में उलझाना शासकवर्गों का एक फरेब है. आध्यातम के झंडाबरदार वास्तविक समस्याओं को गौड़ बताकर मानवता के साथ गद्दारी करते हैं. अध्यात्म के सारे पुरोधा अज्ञान फैलाने वाले धूर्त हैं. आध्यात्मिक धूर्तता के चलते ही शोेषण-दमन निर्बाध चलता है इस मुल्क में. किसी आध्यात्मिक गुऱी का नाम बताइए जो फरेबा और मक्कार न हो
शंकराचार्य भौतिकवादी बौद्ध और लोकायत दर्शनों के प्रभाव को खत्म करने के प्रयास में दुनियादारी की ठोस समस्ययाओं की समाधान ढूढ़ने में असमर्थ होे अद्वैत का रहस्यवाद रचा जिसे रामानुज ने परमार्दित किया और राम मोहन रॉय और विवेककानंद ने पुनर्परिभाषित किया. स्वामी करपात्री, त्रिडंडी महराज मेरे ननिहाल के गांव के मंदिर के निर्माता और कुलगुरू थे. ये सब सत्य की तलाश में भटके हुए लोग थे जो किसी अमूर्त काल्पनिक ब्रह्म का अवधारणा में अटक गये, इनके आधुनिक, वुकृत संसकरण संसकरण बाबा रामदेव और बापू आसाराम जैसे जनद्रोही हैं.
फिलहाल मित्र शंकराचार्य का और कुछ पढ़ने का वक्त नहीं है जितना पढ़ना है, दुनिया के लिए सार्थक और प्रासंगिक उसके ही लिए वक़्त कम है, आध्यात्म की अमूर्त और अबोध्यगम, हवाई आख्यानों के लिए कहांँ वक़्त मिलेगा. कोई ब्रह्म है कि नहीं कोी उह लोक है कि नहीं, मेरे सरोकार का विषय नहीं है. मेरे लिए जो है वही सत्य है जो आध्यातमिक सत्य है जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता वह माया और फरेब है जो हक़ीकत के दुख-दर्द से लोगों का ध्यान हटाकर किसी सुखद उहलोक के हवाई मायाजाल में उलझा देता है. इसीलिए मैंने कहा आध्यात्म चिंतन का विरोधी है क्योंकि आस्था प्रश्न से परे है. मछ और हठ बूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों को बल प्रदान करते हैं. मानवता की मुक्ति पूजा-अनुष्ठान से नहीं, शोषण-दमन और वर्चस्व के निज़ाम के खात्मे से होगी.
No comments:
Post a Comment