Wednesday, March 5, 2014

मोदी विमर्श 14

Fascist goons are not only morally bankrupt but cowards also. Ambani's paid agent, responsible for genocide, arson, plunder  and mass rapes has proved to be a buffoon with his sense of history and geography is scared of AAP unable to respond to Kejriwal's challenge to take stand on Gas basin and the increase in the gas prices and Ambani's Swiss accounts, is becoming insane and desperately wants to thwart the Aam Aadmi by state power and Bajrangi lumpens. Modi's devotees, mostly educated duffers latch ob any one questioning Modi's links with corporate and destruction of Gujrat by destroying its composite culture and handing over peoples' resources to corporate, particularly Tatas, Adanis and Ambanis.  They are educated as they have university degrees and duffers as they do not apply mind that distinguishes humans from other animals to know one quality of this imperialist agent that makes him their God. I challenge all the people suffering with the disease of Modiyapa to quote one act or word that proves Ambani's  this man  a visionary.

संघ का प्रशिक्षण जवाब देना नहीं, गाली-गलौच सिखाता है. पढ़े-लिखे मोदियाये जाहिल केजरीवाल के धमाल से बौखला गये है उनके दिमागों में खुज़ली मच गयी है. जाहिल उसलिए कि इन्हों भगत सिंह को काला पानी भेजने वाले मोदी नामक जाहिल का एक भी गुण नहीं मालुम जिससे वह इनका भगवान बन गया है. खैर आस्था में तर्क वर्जित होता है.

@Mohan Pathak. काश आपकी बात सच होती! जेयनयू में भी काफी संघी हैं, कुछ सकच्छ ऐऔर कुछ निष्कच्छ. विषयांतर करने की संघी चाल पुरानी है. कुछ भी विषय क्यों न हो उनके सर पर वामपंथ का नहीं तो जे्यनयू का भूत सवार हो जाता है. शाखा का प्रशिक्षण दिमाग कतुंद कर देता है किसी सवाल का जवाब इनके पोस होता नहीं अभुआने लगते हैं. कोई संघी संघ की बािबिल समझे जाने गोलवल्कर की जहालत भरी किताब बंच आफ थॉट तक नहीं पढ़ता और उसे ज्ञान-कुंज मान लेता है. विवेक भ्रष्ट करने की संघी साज़िशों के बावजूद, कोई भी विवेकशील व्यक्ति संघी जहालत से निकलेगा ही, कई आजीवन नहीं निकल पाते और उनमें से कई सांसद और मंत्री भी बन जाते हैं और कई प्रधानमंत्री बनने का दिवास्वप्न देखने लगते हैं. मैं भी उस सड़ांध से निकल न पता तो आज भूतबूर्व मंत्री या सांसद होता. यक़ीन न हो तो नरेंद्र कुमार सिंह गौड़, मुरली मनोहर जोशी आदि से पूछ लीजिए. 17-18 साल की उम्र में इलाहाबाद विद्यार्थी परिषद का प्रकाशनमंत्री था ऐर आधा-सच आधा-झूठ प्रेस विज्ञप्तियां लिख कर सभाओं में अटल मार्का लफ्फाजी करके सोचता था राष्ट्र भक्ति का काम कर रहा हूं. जल्दी ही सद्बुद्धि आ गई और देश की सामासिक संस्कृति को नष्ट कर धर्मोंन्माद फैलाकर सत्ता हासिल कर अपने कांग्रेसी जुड़वा भाइयों की ही तर्ज़ पर मुल्क को साम्राज्यवादी महाप्रभुओं के पास गिरवी रखने साज़िश से अलग हो गया और इस साज़िश को नाकाम करने के लिए संकल्पबद्ध हो गया.

मैं तो दिदरो के इस कथन का समर्थक हूं जो उन्होने रूसो कहा था, "Though I disapprove of your ideas but I shall fight for your right to express them ....." बिल्कुल सही फरमा रहे हैं विचारों के परस्पर मंथन से ही सत्य का आविर्भाव होता है, विमर्श से ही ज्ञान की परंपराएं पनपती हैं इसीलिए विचारों की असहिष्णुता की संघी प्रवृत्ति का विरोधी हूं. वैचारिक दिवालिएपन के चलते विचारों का खंडन करने की बजाय, विषयांतर करके या गाली-गलौच से किसी सार्थक बहस का गला घोंट देते हैँ और देश के सांस्कृतिक चौकीदार बन जाते हैं.

कौटिल्य के अर्थशास्त्र के 3 अनुवाद हैं और विवेकानंद की काफी कृतियां, शर्म तो इस जहालत पर आनी चाहिए जो ज्ञान को भूगोल में गिरफ्तार करना चाहते हैं. कौटिल्य के बाद भारत में कोई उतना बड़ा राजनैतिक चिंतक नहीं पैदा हुआ. सँघी पढ़ने से परहेज करते हैं इसलिए कुछ भी नहीं पढ़ते. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कंस और कृष्ण को दानवों की कोटि में रखा गया है.  कौटिल्य द्वारा उसके संरचनात्मक अंगों के ऱूप में राज्य की परिभाषा राजनीतिविज्ञान के विकास क्रम में एक अतुलनीय भारतीय योगदान हैं. आपने भी कुछ पढ़ा हो तो आिए संघी जहालत की बजाय कौटिल्य के अर्थ शास्त्र पर बात करें. कौटिल्य के राजधर्म का पालन किया जाय तो तमाम भ्रष्ट सामासिक संस्कृति भंजकों को मैत की सजा (कम-से-कम) मिल जाये.

2 comments: